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शनिवार, 23 फ़रवरी 2008

रचना-1

रचना-1
जान पहचान
बंबई की तरह
गुम हो गई यह बात भी
कि बंबई में एक पडोसी कभी
नही जानता था अपने पडोसी को ।
आज , मुंबई में
बांद्रा का एक हिन्दू
बांचता है तमाम हिन्दुओं की कुंडली
और दिल्ली के इमाम के पास है
पूरे मुसलमानों की पतरी ।
सब खुश हैं कि
आज तमाम हिन्दू , हिन्दुओं को,
मुसलमां मुसलमानों को ,
सिक्ख , सिक्खों को और
सब अपनी- अपनी बिरादरी को
पूरी तरह पहचानने लगे हैं ।
साठ बरसों में
कोई किसी से
अनजान नहीं रहा
सबकी अपने अपने लोगों से
अच्छी जान पहचान हो गई है ।

जीवेश प्रभाकर

शनिवार, 9 फ़रवरी 2008

बाबा का जीवन

बाबा का जीवन एक आदर्श था । हम सबकी उन्हें विनम्र श्रद्धांजली .