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गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

.IPL के लिए सब माफ कर दिया

अब तो हद ही दो गई ...आखिर सरकार को जनता के पैसे इस तरह लुटाने का हक कैसे दिया जा सकता है...IPL के लिए सब माफ कर दिया फिर अब चौके छक्कों और हैट्रिक पर सरकारी ईनाम की घोषणा???  आखिर करदाताओं के पैसे से इस तरह का खिलवाड़ ...यह पूरी तरह गैरवाजिब है..तानाशाही है...एक ऐसे मैच के लिए जिसका न तो कोई अंतर्राष्ट्रीय रिकॉर्ड होता है और न कोई मान्यता ..यह आयोजन पूरी तरह व्यवसायिक है और ऐसे ओयोजन के लिए  कोई लोकतांत्रिक सरकार किस तरह ऐसे ऊलजुलूल फैसले ले सकती है.......कहां है हमारा जागरूक विपक्ष और फेसबुकिया क्रांतिकारी जो केन्द्र सरकार के हर फौसले के खिलाफ जहर उगलते हैं ....धत तेरे की...

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

कोर्ट न्याय के लिए है या दया के लिए ?


क्या संजय दत्त के लिए दिया गया निर्णय  न्याय की अवमानना नहीं है ?
कोर्ट न्याय के लिए है या दया के लिए ?
यदि सुप्रीम कोर्ट ही दया याचिका पर सुनवाई करने लगे तो राष्ट्रपति क्या करेंगे ?
क्या किसी गरीब का स्वास्थ्य फिल्मों में लगे पैसों के सामने कोई अर्थ नहीं रखता ?
ऐसे कई प्रश्न उठ खड़े हुए हैं संजय दत्त के पक्ष में निर्णय आने के बाद......
क्या सुप्रीम कोर्ट द्वारा  संजय दत्त को दी गई रियायत की हर तरह से समीक्षा ,
बहस और चर्चा नहीं होनी चाहिए ?

देखें  कौन कौन चैनल इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट को कटघरे में खड़ा करते हैं ?
या सब  300 करोड़ बचाने की लीपापोती में लग जाते हैं...देखते रहिए

सोमवार, 15 अप्रैल 2013

समकालीन विमर्श का एक महत्वपूर्ण पोर्टल www.vikalpvimarsh.in


समकालीन विमर्श का एक महत्वपूर्ण पोर्टल

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समकालीन विमर्श का एक महत्वपूर्ण पोर्टल शुरु किया है जिसमें समसामयिक मुद्दों पर सार्थक नए आलेखों के साथ साथ विभिन्न माध्यमों में प्रकाशित स्तरीय आलेखों का साभार प्रकाशन  किया जाता है ।
कृपया हमारी वेबसाइट www.vikalpvimarsh.in पर जाएं और अपने सुझाव दें ताकि इसे और भी बेहतर बनाया जा सके ।


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संपादक
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शनिवार, 13 अप्रैल 2013

आज बैसाखी है...ज़रा याद करो कुर्बानी....


ज़रा याद करो कुर्बानी....
आज बैसाखी है और आज हम बेगुनाहों की शहादत को नमन करते हुए अंग्रेजों की क्रूरता को सामने लाना चाहते हैं जो आज तक इस बेरहम हत्याकांड पर माफी तक नहीं मांग सके....

13 अप्रैल 1919 बैसाखी का दिन था और हजारों सिख श्रद्धालु जलियांवाला बाग के पास हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे में खालसा पंथ के गठन को याद करने पहुंचे थे. पूजा के बाद श्रद्धालु जलियांवाला बाग में जमा हुए. बाग के चारों ओर ईंट की दीवार बनी है. बाग में एक कुआं भी है. माना जाता है कि वहां 15 से 20 हजार लोग मौजूद थे.अंग्रेजों को जलियांवाला बाग में लोगों का जमा होना संदिग्ध लगा. लोगों को तितर बितर करने के मकसद से अमृतसर में तैनात ब्रिगेडियर जनरल डायर अपने 50 बंदूकधारी सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग पहुंचे. उनके पास मशीन गन वाले टैंक भी थे, लेकिन बाग के संकरे दरवाजे से इन्हें ले जाने में दिक्कत आ रही थी जिस वजह से उन्हें बाहर छोड़ दिया गया. अंदर जनरल डायर ने लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाने का आदेश दिया. दीवार से घिरे बाग से भागने का लोगों के पास चारा नहीं था जिस वजह से कई लोग गोलियों का शिकार बने. बहुत लोग कुएं में कूदकर मारे गए. उस वक्त अंग्रेजी शासन ने मृतकों की संख्या 400 बताई, लेकिन गोलियों के शिकार लोगों की संख्या 2,000 से भी ज्यादा थी....बाद में शहीद उधम सिंह ने इसका बदला लिया...

गुरुवार, 11 अप्रैल 2013


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आज फणीश्वरनाथ रेणु की पुण्यतिथि है...पढ़ें उनकी एक कहानी
नैना जोगिन--- फणीश्वरनाथ 'रेणु'
सो, पिछले ग्यारह वर्षों में रतनी की माँ ने मुँह के जोर से ही पंद्रह एकड़ जमीन 'अरजा' है। पिछवाड़े में लीची के पेड़ हैं, दरवाजे पर नीबू। सूद पर रुपए लगाती है। 'दस पैसा' हाथ में है और घर में अनाज भी। इसलिए अब गाँव की जमींदारिन भी है वही। गाँव के पुराने जमींदार और मालिक जब किसी रैयत पर नाराज होते तो इसी तरह गुस्सा उतारते थे। यानी उसकी बकरी, गाय वगैरह को परती जमीन पर से ही हाँक कर दरवाजे पर ले आते थे और गालियाँ देते, मार-पीट करते और अँगूठे का निशान ले कर ही खुश होते थे।....पूरा पढ़ें..
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मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

चावेज द्वारा 20 सितंबर 2006 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिये गये तीखे अमेरिका विरोधी भाषण के अंश

कल शैतान आया था
चावेज द्वारा 20 सितंबर 2006 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिये गये तीखे अमेरिका विरोधी भाषण के अंश

सबसे पहले मैं सम्मान के साथ आप सब को आमंत्रित करना चाहता हूं, जिन्हें उस पुस्तक को पढ़ने का अवसर नहीं मिला, जिसे हमने पढ़ा है। नोम चॉम्स्की, जो विश्व और अमेरिका के सबसे प्रतिष्ठित बुद्धिजीवियों में से हैं, उनकी सबसे नयी रचना "हेजेमनी ऑर सरवाइवल?' मुझे लगता है कि अमेरिका में हमारे भाइयों और बहनों को यह किताब सबसे पहले पढ़नी चाहिए क्योंकि खतरा उनके अपने घरों में ही है। शैतान उनके घर में ही है। खुद शैतान उनके घर में है।वह शैतान कल यहां था। कल शैतान यहां, इसी जगह पर मौजूद था। यह मेज, जहां से मैं आपको संबोधित कर रहा हूं, अभी भी गंधक की तरह महक रही है। कल इसी हॉल में अमेरिका के राष्ट्रपति, जिन्हें में "शैतान'कहता हूं, आये थे और इस तरह बात कर रहे थे मानो दुनिया उनकी जागीर हो। अमेरिकी राष्ट्रपति के कल के भाषण का विश्लेषण करने के लिए किसी मनोवैज्ञानिक की जरूरत होगी।साम्राज्यवाद के एक प्रवक्ता की तरह वे हमें अपने वर्तमान आधिपत्य, शोषण और विश्व के लोगों को लूटने की अपनी युक्ति बताने आये थे। इस पर अल्फ्रेड हिचकॉक की एक अच्छी फिल्म बन सकती है। मैं उसका शीर्षक भी सुझा सकता हूं - "द डेविल्स रेसिपी'। मतलब यह कि अमेरिकी साम्राज्यवाद- जैसा कि चॉम्स्की भी गंभीरता और स्पष्ट रूप से कहते हैं- अपने आधिपत्य की वर्चस्ववादी व्यवस्था को स्थापित करने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। हम इसे होने नहीं दे सकते। हम उसकी वैश्विक तानाशाही को स्थापित होने नहीं दे सकते, उसे मजबूत होने नहीं दे सकते। विश्व के उस अत्याचारी राष्ट्रपति का वक्तव्य दंभ और पाखंड से भरा है। यह साम्राज्यवादी पाखंड है, जिसके जरिये वे सभी कुछ नियंत्रित करना चाहते हैं। वे हम पर लोकतांत्रिक मॉडल थोपना चाहते हैं, जिसे उन्होंने खुद बनाया है। कुलीनों का मिथ्या लोकतंत्र। और इससे भी ज्यादा, एक ऐसा लोकतांत्रिक मॉडल, जो विस्फोट, बमबारी, आक्रमण और बंदूक की गोलियों के बल पर थोपा गया है। ऐसा है वह लोकतंत्र! हमें अरस्तू की स्थापनाओं और लोकतंत्र के बारे में बताने वाले आरंभिक यूनानियों की फिर से समीक्षा करनी पड़ेगी और देखना होगा कि आखिर नौसैनिक आक्रमण, हमले, उग्रवाद और बमों से लोकतंत्र का कौन सा मॉडल थोपा जा रहा है।अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसी हॉल में कल कुछ बातें कही थीं। मैं उनका वक्तव्य दुहराता हूं, "आप जहां कहीं भी नजर दौड़ायें, आपको उग्रवादियों की बात सुनने को मिलेंगी जो कहते हैं कि आप हिंसा, आतंक और शहादत से अपनी तकलीफों से छुटकारा पा सकते हैं और अपना आत्मसम्मान हासिल कर सकते हैं।' वे जिधर भी नजर दौड़ाते हैं, उन्हें उग्रवादी ही दिखते हैं। मुझे पता है भाइयो, वे आपको देखते हैं, आपकी चमड़ी के रंग से देखते हैं और सोचते हैं कि आप एक उग्रवादी हैं। रंग के आधार पर ही बोलीविया के सम्मानित राष्ट्रपति एवो मोरालेस, जो कल यहां मौजूद थे, एक उग्रवादी हैं। साम्राज्यवादियों को हर तरफ उग्रवादी ही नजर आते हैं। ऐसा नहीं है कि हम उग्रवादी हैं। हो यह रहा है कि दुनिया अब जाग गयी है। चारों तरफ लोग उठ खड़े हो रहे हैं। मिस्टर साम्राज्यवादी तानाशाह, मुझे लगता है कि आप अपने शेष दिन दुःस्वप्न में ही गुजारेंगे क्योंकि इसमें संदेह नहीं कि आप जहां कहीं भी नजर दौड़ायेंगे, हम अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ खड़े नजर आयेंगे।हां, वे हमें उग्रवादी कहते हैं, क्योंकि हमने विश्व में संपूर्ण स्वतंत्रता की मांग की है, लोगों के बीच समानता और राष्ट्रीय संप्रभुता की गरिमा की मांग की है। हम साम्राज्य के खिलाफ उठ खड़े हो रहे हैं, आधिपत्य के मॉडल के खिलाफ खड़े हो रहे हैं।

(सौज. पब्लिक एजेंडा पत्रिका)