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सोमवार, 15 दिसंबर 2014

रायपुर साहित्य महोत्सव पर------------

रायपुर साहित्य महोत्सव पर------------

निर्वाचित हत्यारों के साथ रायपुर मेँ ---विमल कुमार

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मैं रायपुर जाना चाहता हूँ
हत्यारों के सामने शीश नवाने के लिए
उन्हें बताने के लिए 
कि मुल्क में अब बहुत शांति है
दंगे फसाद अब नहीं होते
और कोई भूखा नहीं है अब
डिजिटल इंडिया में
मैं रायपुर जाकर यह भी बताना चाहता हूँ
कि तुम मुझे खरीद भी सकते हो
इस तरह सम्मानित करके
जब चाहो
तुम जहाँ भी करोगे आमंत्रित
वहां हम हाज़िर हो जायेंगे
बिलाशक
मैं अभी जा रहा हूँ
निकल गया हूँ घर से
क्योंकि वहां जाना बहुत जरूरी है
लोकतंत्र की रक्षा के लिए
अगर मैं नहीं गया वहां तो
तो तुम मुझे एक दिन
इतिहास से भी बाहर कर दोगे
जा रहा हूँ
कि उनके अल्बम में एक तस्वीर मेरी भी हो
कम से कम
निर्वाचित हत्यारों के साथ
जो तस्दीक करे
कि मैं कहाँ खड़ा था अपने समय में
-विमल कुमार
( ताकि सनद रहे और वक्त ज़रुरत काम आये )

गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार के 11 वर्ष : -जीवेश चौबे

इस दिसम्बर छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार के 11 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं । लगातार तीसरी बार जीतने का शानदार रिकार्ड बनाकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने देश में अपना नाम व मान बढ़ाया है । प्रदेश गठन के पश्चात हुए पहले स्वतंत्र चुनाव में डॉ. रमन सिंह ने पहली बार 2003 में बहुमत प्राप्त किया था । तब लगभग अजेय समझे जाने वाले कांग्रेस के अजीत जोगी को मात देकर डॉ. रमन सिंह ने पहली बार छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री का पद संभाला ,तब से लगातार उन्होंने अपनी सौम्य व संयत छवि से प्रदेश के मतदाताओं को अपने मोह से बांधे रखा है। 2008 एवं पिछले वर्ष 2013 दोनों ही चुनावों में तमाम अटकलों को विराम देते हुए उन्हों जीत का परचम लहराया । इस वर्ष उनकी हैट्रिक को 1 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं । इस पर सुहागा ये कि केन्द में भी भाजपा की सरकार पूर्ण बहुमत से सत्ता में आ गई है, तो अब जीत की हैट्रिक का जश्न तो बनता है । इसी खुशी को सार्वजनिक रूप से मनाने के बहाने आने वाले निकाय चुनावों में पकड़ बनाने के उद्देश्य से भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने जश्न को वृहत्तर स्तर पर आयोजित किया है । इस कड़ी में दो महत्वपूर्ण आयोजन किए जा रहे हैं । एक राजनैतिक व सांगठिक स्तर पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की रैली एवं दूसरा बौद्धिक वर्ग को संतुष्ठ करने राष्ट्रीय स्तर का साहित्यिक आयोजन, रायपुर साहित्य महोत्सव, इसी कड़ी में पहली बार आयोजित किया जा रहा है । 12 दिसम्बर को अमित शाह की रैली एवं साहित्यिक महोत्सव का आयोजन इसी मायने में महत्वपूर्ण है कि प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार लगातार तीसरी बार सत्ता में आई है एवं तीसरी बार सत्ता में आने एक वर्ष भी पूर्ण हो रहे हैं । भाजपा की यह उपलब्धि कम नहीं है । ऐसा नहीं है कि भाजपा को यह उपलब्धि कोई थाली में परोसकर मिली हो । इन 11 वर्षों में ऐसी कई घटनाएं हुई जिससे लगा कि अब भाजपा के दिन लद गए मगर पार्टी जीतने में कामयाब रही । पिछले कार्यकाल में गर्भाशय कांड से लेकर झीरम घाटी तक की वारदातों ने भाजपा की नींद उड़ा दी थी । मगर कांग्रेस अपेक्षित लाभ उठाने में नाकाम रही । इधर तीसरी बार सत्ता में आई भाजपा के लिये यह एक वर्ष भी काफी दुखदायी रहा है । हाल ही में नसबंदी कांड , फिर नक्सल हमले में जवानों की मौत और फिर नवजात शिशुओं की लगातार मौतों ने सरकार को परेशानियों के साथ साथ सवालों के कटघरे में भी खड़ा कर दिया है । विपक्षी दल कांग्रेस लगातार इन मुद्दों पर सरकार को घेर रहा है मगर आम जनता में किसी तरह न तो कोई जन आंदोलन खड़ा हुआ न ही सामाजिक स्तर पर कोई ठोस विरोध के साथ सामने आया । कुल मिलाकर राजनैतिक विरोध की आड़ में संवेदनशील मद्दे दब कर रह गए। काँग्रेस ने तमाम तरीके अपनाए यहां तक कि देश की राजधानी दिल्ली में भी राय सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किए , मगर आब तक तो कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया । विपक्षी दल कांग्रेस ने इन हादसों को लेकर साहित्य महोत्सव का भी विरोध किया । साहित्यकारों से महोत्सव में शामिल न होने की अपील की इसका आगे क्या असर होगा यह तो समय बताएगा मगर अब तक तो किसी साहित्यकार ने काँग्रेस की अपील को गंभीरता से लिया हो ऐसा लगता नहीं है । विपक्षी दल के नाते कांग्रेस का विरोध भी अपनी जगह ठीक है । यदि भाजपा विपक्ष में होती तो वह भी यही करती । बात साहित्यकारों की करें तो यह बात काफी दुखद भी है कि पूर्व में भी किसी घटना पर कभी भी साहित्यकारों की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलती रही । विशेष रूप से छत्तीसगढ में गर्भाशय कांड, झीरम घाटी ,नसबंदी कांड , नवजात शिशुओं की मौत से लेकरअभी या पूर्व में भी नक्सली हमलों में मारे गए जवानों का मामला हो, इन किसी भी हादसों में अंचल के साहित्यिक बौद्धिक हलकों में कोई प्रतिक्रिया दिखलाई नहीं दी । इससे इन आत्मकेन्द्रितों की संवेदनशीलता का अंदाजा लगाया जा सकता है । ऐसे लोगों से अपील करने का क्या तुक? और इसका नतीजा भी कुछ कुछ देखने मिला जब अखबारों में कुछ साहित्यकारों के साक्षात्कारों में उन्होंने खुलकर कांग्रेस की अपील को खारिज कर दिया। वैसे यह ठीक भी है कि कांग्रेस के कहने से कोई क्यों चले ? लोग कहने लगे कि अशोक बाजपेयी ने तो दशकों पूर्व कांग्रेस के शासनकाल में भोपाल गैस त्रासदी के ठीक बाद हुए साहित्यिक महोत्सव में कहा था कि मुर्दो के साथ मर नहीं जाते । कल भी साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि महोत्सव है कोई मनोरंजन नहीं जिसका विरोध किया जाय , इतने वरिष्ठ और विद्वान साहित्यकार ने प्रतिक्रिया में कहा तो ठीक ही होगा । विभिन्न मसलों पर अक्सर बौद्धिक साहित्यिक वर्ग सर्द खामोशी ओढ़े रहता है । इक्का दुक्का साहित्यकारों को छोड़ सराकरी प्राश्रय प्राप्त साहित्यकार अक्सर चुप रहकर अपनी रोटियाँ सेकते रहते हैं । एक सतही और चलताऊ सा तर्क दे देते हैं कि हर घटना पर कोई झण्डा उठा लेना, धरना देना या सड़क पर आना तो जरूरी नहीं है ... मुद्दों से कन्नी काट जाने का यह अच्छा बहाना होता है । इस बीच नक्सलियों के हमले में एक बार फिर जवानों की मौत हुई । नक्सल मोर्चे पर सरकार लगातार नाकाम हो रही है । अब तो केन्द्र में भी भाजपा की सरकार है तो ठीकरा केन्द्र पर मढ़ना भी संभव नहीं हो पा रहा है । केन्द्रिय गृहमंत्री आए और राजधानी से ही लौट गए । बस्तर मुख्यालय जगदलपुर तक जाने की ज़ेहनत नहीं उठाई । छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से ही केन्द्र की उपेक्षा का शिकार रहा है चाहे केन्द्र में कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की । इन सब मुद्दों पर हर तरह के विरोध विपक्षी दल करते रहे हैं । यह विपक्ष का कर्म भी है और धर्म भी। मगर हकीकत ये है कि भाजपा विगत 11 वर्षों से लगातार सत्ता में काबिज है और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को फिलहाल किसी भी तरह की कोई गंभीर चुनौती मिलती दिख नहीं रही है । तो सफलता का जश्न भी लाजमी है जो अमित शाह की रैली और रायपुर साहित्य महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है । ®®®

मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014

संगमन-20

संगमन- 20
इस बार मण्डी, हिमाचल प्रदेश में....

मंगलवार, 30 सितंबर 2014

अकार 39 में- नामवर सिंह के जीवन के कुछ अनुद्धाटित तथ्य


नामवर सिंह के जीवन के कुछ अनुद्धाटित तथ्य
http://sangamankar.com/index.php?option=com_content&view=article&id=248&Itemid=692
1960 का नामवर सिंह से जुड़ा यह गोपनीय सरकारी पत्र व्यवहार हमें'नेशनल आर्काइव' से प्राप्त हुआ है। यह पत्र व्यवहार नामवर जी के शुरूआती जीवन की एक पूरी छवि देता है। उनकी वैचारिकता, कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति प्रतिबध्दता और सक्रियता का प्रमाण भी है। सागर विश्वविद्यालय में नामवर जी की हिंदी के असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति तथा आगे उसे स्थायी करने के प्रति तत्कालीन वाइस चांसलर डी.पी. मिश्रा का पत्र बेहद ध्यान से पढ़े जाने की मांग करता है। इसी तरह सीआईडी रिपोर्ट भी । ये दोनों दस्तावेज नामवर जी के एक प्रतिबध्द, समर्पित,सक्रिय कम्युनिस्ट होने का प्रमाण हैं और इसका भी, कि कांग्रेसी सरकार, विशेष रूप से डी.पी. मिश्रा, किस तरह कम्युनिस्टों के प्रति सोचते और व्यवहार करते थे। …..
पूरा पढ़ें....
http://sangamankar.com/index.php




बुधवार, 3 सितंबर 2014

विकल्प विमर्श पत्रिका का विशेषांक

विकल्प विमर्श पत्रिका द्वारा साहित्य पर केन्द्रित विशेषांक का प्रकाशन किया जा रहा है । इस विशेषांक के लिए युवा / नए रचनाकारों सहित सभी रचनाकारों से कविता, कहानी,रम्य रचना, निबंध,कला, रंगमंच संगीत पर आलेख एवं आलोचनात्मक आलेख आमंत्रित किए जाते हैं । रचना भेजने के लिए कोई उम्र का बंधन नहीं है । रचनाकारों से अनुरेध है कि वे अपनी चुनिंदा , स्तरीय एवं अप्रकाशित रचनाएं ही प्रेषित करें। कविताएं अधिकतम पांच ही भेजें जिससे चयन में सुविधा हो । हास्य कविताएं स्वीकार नहीं की जायेंगी । कहानी/ आलेख एक ही भेजें। रचना के साथ फोटो सहित अपना संक्षिप्त परिचय  भी भेजें तो बेहतर होगा ।






रचनाएं   Krutidev 010 Font या  Bhaskar Font में टाइप कर हमारे
Email- vikalpvimarsh@gmail.com पर भेज सकते हैं ।
यदि आप हस्तलिखित भेजना चाहें तो निम्न पते पर डाक से भेज सकते हैं -
प्रति,
संपादक
विकल्प विमर्श
       87, निगम कॉलोनी, अग्रसेन चौक
       रायपुर- 492001 (छ.ग.)
रचना की एक प्रति आप अपने पास सुरक्षित रखें क्योंकि अस्वीकृत रचनाओं को वापस भेज पाना संभव नहीं होगा ।
रचना भेजने की अंतिम तिथि 15 अक्टूबर 2014 है।


संपादक   

मंगलवार, 2 सितंबर 2014

विकल्प विमर्श में इस हफ्ते-






विकल्प विमर्श में इस हफ्ते-

(नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें..)
आलेख
जनता तलाश लेगी रास्ता---प्रभाकर चौबे
नरेन्द्र मोदी की बेलगाम भाषा के खतरे- जगदीश्चवर चतुर्वेदी
भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष का इतिहास बोध
ईराक: बुश और ब्लेयर द्वारा पैदा किया गया संकट--- एन्ड्रयू मुरे 

विमर्श-
अभिमन्यु की आत्महत्या -- राजेंद्र यादव
संगीत मेरे परिवार में नहीं:--- प्रियदर्शिनी कुलकर्णी

http://www.vikalpvimarsh.in/moremanoranjan.asp?Details=4759

गुरुवार, 28 अगस्त 2014

हरिशंकर परसाई जयंती

प्रगतिशील लेखक संघ रायपुर द्वारा हरिशंकर परसाई जयंती पर गोष्ठी का आयोजन
हरिशंकर परसाई जयंती के अवरसर पर प्रगतिशील लेखक संघ रायपुर द्वारा एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया । आयोजित गोष्ठी में मुख्य अतिथि वरिष्ठ समीक्षक श्री राजेन्द्र मिश्र एवं विशेष अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार श्री विनोद कुमार शुक्ल उपस्थित थे । कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रगतिशील लेखक संघ छत्तीसगढ़ के संरक्षक एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रभाकर चौबे ने की । हरिशंकर परसाई जयंती के अवसर पर प्रगतिशील लेखक संघ रायपुर द्वारा आयोजित गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में मुख्य वक्ता सुपरिचित व्यंयकार श्री विनोद शंकर शुक्ल थे । कार्यक्रम का संचालन प्रगतिशील लेखक संघ रायपुर के सचिव जीवेश प्रभाकर ने किया । कार्यक्रम के प्रारंभ में प्रगतिशील लेखक संघ रायपुर की ओर से रायपुर इकाई के अध्यक्ष श्री संजय शाम, श्री नंद कंसारी , श्रीमती उर्मिला शुक्ल , श्री अरुणकांत शुक्ल, वरिष्ठ कथाकार एवं उपन्यासकार श्री तेजिंदर जी ने अतिथियों का स्वागत किया । सर्वप्रथम सुप्रसिद्ध व्यंगकार श्री विनोद शंकर शुक्ल ने आधार वक्तव्य प्रस्तुत किया । अपने उद्बोधन में श्री विनोद शंकर शुक्ल ने परसाई जी के लेखन पर प्रकाश डालते हुये कहा कि लोकशिक्षण में परसाई कबीर व तुलसी की परम्परा के लेखक माने जा सकते हैं । उनके सुप्रसिद्ध कॉलम 'सुनो भई साधो' एवं पूछिए परसाई से के जरिए वे लोक से जुड़कर लोगों को शिक्षित करने की कोशिश करते रहे । श्री विनोद शंकर ने आगे कहा कि परसाई जी का लोक शिक्षण कई संगठनो एवं आंदोलनों से भी कहीं यादा था । श्री शुक्ल ने आगे कहा कि आजादी के पहले प्रेमचंद ने, और आजादी के पश्चात परसाई जी ने लोकशिक्षण के लिए अतुलनीय काम दिया । परसाई जी की कथनी और करनी में अंतर नहीं था और वे अपनी बात बेबाकी से व्यक्त किया करते थे । पं. जवाहार लाल नेहरू के प्रशंसक होने के बावजूद उन्होंने नेहरू युग के मायावाद को तोड़ा एवं पंचवर्षीय योजनाओं से पनपने वाले भ्रष्टाचार की कड़ी आलोचना की । इस अवसर पर उपस्थित वरिष्ठ कथाकार एवं उपन्यासकार श्री तेजिन्दर ने परसाई जी को याद करते हुए कहा कि परसाई जी अपने साथ युवा लोगों को बड़ी सहजता में जोड़ लेते थे तथा वे लेखकीय आभा से काफी दूर रहा करते थे । उनके सानिध्य में लगातार सीखने को मिलता था । वरिष्ठ लेखक श्री अरूणकांत शुक्ल ने परसाई के निबंधों पर चर्चा करते हुए कहा कि परसाई जी धर्म और विज्ञान दोनों को कसौटी पर कसकर उसकी व्याख्या किया करते थे । श्री अरुणकांत ने कहा कि परसाई कहा करते थे कि धर्म और विज्ञान दोनो यदि गलत हाथों में पड़ जाएं तो मानव एवं मानवता दोनो खत्म होते हैं। इसके पश्चात श्री सुभाष मिश्र ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि हालांकि परसाई जी ने कोई नाटक नहीं लिखा मगर आज देश भर में परसाई जी की रचनाओं के नाटय रूपांतरणों का ही मंचन सबसे यादा किया जा रहा है । वरिष्ठ समीक्षक श्री राजेन्द्र मिश्र ने परसाई जी के लेखन पर अपनी बात रखते हुये कहा कि परसाई जी के लेखन का केन्द्रिीय भाव दुख है मगर उन्होंने दुख को मुक्ति की भावना से जोड़ने का काम किया । उन्होंने कहा कि परसाई मानते हैं कि मुक्ति अकेले की नहीं होती बल्कि सबके साथ होती है । श्री मिश्र ने कहा कि परसाई व्यंगकार नहीं बल्कि समग्र रूप से एक उत्कृष्ठ रचनाकार थे जिन्होंने ठोस लेखन किया । उन्होंने कहा कि परसाई 3-4 शब्दों में एक पूरा वाक्य रच दिया करते थे जो एक अद्भुत कार्य है । अंत में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रभाकर चौबे ने परसाई के समग्र लेखन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ''हरिशंकर परसाई भारत में राजनैतिक व्यंग्य के जनक थे , वे स्पष्ट रूप से एक व्यंग्यकार थे जिस पर पूरे हिन्दी साहित्य को गर्व है'', उन्होंने कहा कि परसाई के लेखन से पूरा समय झांकता है । श्री प्रभाकर चौबे ने कहा कि परसाई एक एक्टीविस्ट भी थे। वे सहज हास्य नहीं बल्कि गंभीर व्यंय लिखते थे जो भीतर तक घाव करता ङै । परसाई स्वयं कहा करते थे कि वे लेखक छोटे हैं मगर संकट बड़े हैं इस संदर्भ में श्री प्रभाकर चौबे ने कहा कि कोई भी सत्ता एक सीमा के पश्चात लेखकीय स्वतंत्रता बर्दाश्त नहीं करती। कार्यक्रम का संचालन प्रगतिशील लेखक संघ रायपुर के सचिव श्री जीवेश प्रभाकर ने किया एवं प्रगतिशील लेखक संघ रायपुर ईकाइ के अध्यक्ष श्री संजय शाम ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में नगर के अनेक साहित्यकार रंगकर्मी एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

गुरुवार, 21 अगस्त 2014

परसाई जयंती पर.विकल्प विमर्श में पढ़ें..-

http://www.vikalpvimarsh.in
विकल्प विमर्श में -
परसाई जयंती पर पढ़ें...
परसाई:लेखन से झांकता समय --- प्रभाकर चौबे
कंधे श्रवणकुमार के ----हरिशंकर परसाई 
http://www.vikalpvimarsh.in/morekahani.asp?Details=4747



शनिवार, 9 अगस्त 2014

विकल्प विमर्श में

विकल्प विमर्श में
http://www.vikalpvimarsh.in


आनेख / समसामयिक में 
शिक्षा पर- राष्ट्रपति की चिंता- प्रभाकर चौबे
http://www.vikalpvimarsh.in/moreSampadkiya.asp?Details=4744
हिंसा पर इसराइली और फिलस्तीनी औरतो की सोच 
http://www.vikalpvimarsh.in/moreTopstory.asp?Details=4742
कहानी -
चीफ की दावत-भीष्म साहनी 
http://www.vikalpvimarsh.in/morekavita.asp?Details=4743
अपनी भाषा से उदासीनता नहीं: ओरसिनी
http://www.vikalpvimarsh.in/morekahani.asp?Details=4728
लंदन में नाटकघरों का सुनहरा युग
http://www.vikalpvimarsh.in/morerangmanch.asp?Details=4731
मध्यपूर्व पर बदलता भारतीय रुख
http://www.vikalpvimarsh.in/moreTopstory.asp?Details=4730
इज़राइल की बर्बरता के खिलाफ़ आवाज़ उठाना क्यों ज़रूरी है? –


http://www.vikalpvimarsh.in/morevimarsh.asp?Details=4729

मंगलवार, 22 जुलाई 2014

विकल्प विमर्श में इस हफ्ते......


विकल्प विमर्श में इस हफ्ते......
(दिए गए लिंक पर क्लिक करें..)
आगे पांच साल---प्रभाकर चौबे का लेख
http://www.vikalpvimarsh.in/moreSampadkiya.asp?Details=4715
इज़राइल की बर्बरता के खिलाफ़ आवाज़ उठाना क्यों ज़रूरी है?
http://www.vikalpvimarsh.in/morevimarsh.asp?Details=4719
http://www.vikalpvimarsh.in/morekahani.asp?Details=4717

http://www.vikalpvimarsh.in/morekavita.asp?Details=4720

मंगलवार, 17 जून 2014

अकार क नया अंक- अकार 38

अकार का नया अंक
अकार 38 प्रकाशित हो चुका है ।

आप इसे नेट पर भी पढ़ सकते हैं
जिसकी लिंक नीचे दी गई है ः--

http://sangamankar.com/index.php?option=com_content&view=article&id=226&Itemid=555


अकार सदस्यता संबंधी विवरण
          एक प्रति                     - 50/रू.
          वार्षिक सदस्यता               - 150/रू.
          संस्थागत                     -200/रू.
          आजीवन सदस्यता              - 1500/रू.
          संस्थागत आजीवन सदस्यता      - 2000/रू.
पत्रिका रजिस्टर्ड डाक/ कूरियर से माँगने के लिये कृपया 100- रुपये (तीन अंक) और जोड़ लें ।
सम्पर्क
प्रियंवद
15269, सिविल लाईन्सकानपुर - 208  001
फोन न. : 0512-2305561 (नि.) (M) 09839215236
जीवेश प्रभाकर
69/2213, रोहिणीपुरम -2, रायपुर-492001 (छ.ग.)
फोन –09425506574  ई मेल - jeeveshprabhakar@gmail.com   

जीवेश प्रभाकर
(उप संपादक)

शनिवार, 17 मई 2014

गुरुवार, 1 मई 2014

मजदूर दिवस पर.......



शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

क्रोनी कैपेटेलिस्म या लम्पट पूंजीवादः शब्दों की बाजीगरी से पूंजीवाद को बचाए रखने की कोशिश - -जीवेश प्रभाकर

क्रोनी कैपेटेलिस्म  शब्द आजकल खूब चर्चा में लाया जा रहा है ।हिन्दी में इसे लंपट पूंजीवाद कहा जाने लगा है । जो भी हो हमें इस शब्द  का प्रचार या कहें इस्तेमाल भी बंद करना होगा। सहज, सरल, ग्राह्य, उदार और सर्वोपयोगी  के नाम पर लच्छेदार शब्दावली का उपयोग करते हुए पूंजीवाद को जनता के सामने बेहतर और एकमात्र विकल्प साबित करने के उद्देश्य से इस शब्द को जानबूझकर फैलाने और इस पर बहस की जबरिया कोशिश की जा रही है । देश में विगत 20 वर्षों से जारी अपने प्रयोगों की असफलता से घबराई विश्व पूंजी पॉपुलर टर्मिलॉलॉजी के जरिए पूंजीवाद  को नए सिरे से  स्थापित  करने के  कुत्सित प्रयास में लग गई हैं । इस प्रयास में तमाम बुर्जुआ पार्टियां एकजुट होकर पिल पड़ी हैं। यह समझाने और मनवाने का प्रयास किया जा रहा है कि साहब देश की समस्याओं का हल सिर्फ और सिर्फ पूंजीवाद से ही संभव है हां इसमें लम्पट तत्वों को फिलहाल दूर रखा जा सकता है । इस बात को देश के उद्योगपतियों के सम्मेलन में बड़ी सफाई और चतुराई से उछाला जाता है और फिर सारा कॉर्पोरेट पोषित मीडिया इसके प्रचार में लग जाता है। आज देश में फैले कालेधन और अराजक पूंजी के बोलबाले से युवा वर्ग भौंचक और भ्रमित है । हमें यह समझना होगा कि पूंजीवाद के गर्भ से क्रोनी कैपेटेलिस्म की ही उत्पत्ति संभव हो सकती है। एक बात सीधी तौर पर समझी जानी चाहिए कि बोयेंगे पूंजीवाद तो लंपट ही फलेंगें ।
हम जानते हैं कि पिछले 2 दशक में नवउदार नीतियों और पूंजीवादी प्रयोगों का दौर तेजी से चला । भारत में तो फिर भी इसने 2 दशक पहले ही अपने पैर पसारने शुरु किए मगर शेष विश्व में इसके भी 2 दशक पहले से इसकी कवायद शुरु हो चुकी थी । आज पूरे विश्व में इन नीतियों की असफलता और घातक परिणामों के चलते इसके विरुद्ध आवाज बुलंद है । आज पूंजीवादी ताकतों के सामने अपना अस्तितव कायम रखने की गंभीर चुनौती आ खड़ी हुई है । अधिकतर यूरोपीय, लेटिन अमरीकी देशों के साथ साथ अमरीका में भी पूंजीवाद गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है । हमारे देश में भी एक बहुत बड़ा वर्ग इन नीतियों की विफलता और दुष्परिणामों की आहट से भयभीत होने लगा है , खासकर वो युवा वर्ग जिसने विगत वर्षों में विश्वव्यापी मंदी में अपनी जमीन खसकते देखी है । इस बात का अंदेशा राजनैतिक पार्टियों को भी हो चुका है और इसीलिए वे पूंजीवाद के मेकओव्हर में लग गई हैं । क्रोनी कैपेटेलिस्म की चर्चा इन्हीं प्रयासों का एक हिस्सा है । ये तो वही बात हुई कि साहब कातिल और डाकू नहीं चलेंगे मगर उठाईगीर से क्या परहेज। अपनी लच्छेदार बयानबाजी और वाकपटुता से ये जनता को लुभाना चाहते हैं  हमें इन मक्कारों के शब्दजाल से बचना होगा और इनकी कुटिल चालों को समझना होगा । 
9वें दशक के अंतिम वर्षों में जब सोवियत संघ टूटा तो पूरे पूंजीवादी देशों ने अपनी सफलता का जश्न बड़े धूमधाम से मनाया था । एक बात गौर करने वाली है कि जब सोवियत संघ का पतन हुआ तो पूंजीवादी ताकतों का अनुमान था कि भारत भी इससे अछूता न रहेगा मगर उस वक्त भारत में इसका प्रभाव ज्यादा नहीं पड़ा और वाम दल सशक्त होकर उभरे । भारत में तब वामपंथी पार्टियों  और दक्षिण पंथी पार्टी भाजपा के सहयोग से व्ही. पी. सिंह की सरकार बनी हालांकि वो ज्यादा दिन नहीं चल सकी ।इसके बाद चंद्रशेखर की सरकार भी गिरा दी गई, फिर हुए मध्यावधि चुनाव में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई । चुनाव में हालांकि कॉंग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला मगर वो सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और नरसिंम्हा राव प्रधान मंत्री बने तथा वर्तमान प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह पहली बार वित्त मंत्री बनाए गए ।  ये देश के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ । बस इसके बाद देश में नवउदार और बाजारवाद ने तेजी से पैर पसारने शुरु किए ।
इन सबके वावजूद वामपंथी सोच देश में अपना अस्तित्व कायम रखने में कामयाब हो रही थी हालांकि इसका प्रभाव काफी सीमित रहा मगर नवउदार और बाजार की ताकतें इसे पूरी तरह समाप्त करने के अपने पूर्व संकल्प पर दृढ़ थी और हैं अतः उस वक्त इन ताकतों ने एनजीओकरण का खतरनाक खेल खेला जिसने सबसे पहले और सबसे ज्यादा वामपंथी कॉडर तो समाहित किया गया । हालांकि एनजीओकरण की प्रक्रिया इसके भी काफी पहले से चल रही थी मगर इतनी व्यापक और सुलभ नहीं थी। विश्व बैंक और आईएमएफ के साथ मिलकर दिए जा रहे कर्जों की शर्तों में एनजीओ की भागेदारी सुनिश्चित करवाई गई । इस एनजीओकरण का सबसे बड़ा खामियाजा वाम दलों को भुगतना पड़ा जिनका एक बड़ा वर्ग इसकी भेंट चढ़ गया । बीसवीं सदी के अंतिम वर्षों में हालांकि एक बार ऐसा मौका आया था जब वामपंथियों को केन्द्र में सरकार बनाने का मौका मिला मगर हमेशा की तरह ऐतिहासिक भूल करते हुए उन्होंने अपने कदम वापस खींच लिए । ये वामपंथ के लिए तो कम मगर देश के लिए काफी नुकसानदायी साबित हुआ।  गौर करने वाली बात ये है कि इसके साथ साथ कश्मीर में आतंकवाद और देश में कट्टरपंथी ताकतों का उभार भी उसी तेजी से हुआ । शायद इसलिए कि नौजवानो का ध्यान पूंजीवाद के इस फैलाव और इसके दुष्परिणामों की ओर न जा पाए ।         

आज जब पूंजीवादी ताकतें नई नई शब्दावली और विभिन्न दांवपेंचों के जरिए एकजुट होकर अपना वर्चस्व बचाने में लगी हुई हैं हमें सावधान रहने की जरूरत है । आज कॉर्पोरेट पोषित मीडिया से पूरा जनपक्ष या कहें वामपंथी सोच रखने वाली पार्टियां गायब कर दी गई हैं । इस षड़यंत्र के तहत चे प्रचारित किया जा रहा है कि वामपंथ अब हाशिए से भी बाहर है । हालांकि इस स्थिति के लिए वामदल भी उतने ही जिम्मेदार हैं क्योंकि वे आमजन से काफी दूर जा चुके हैं और अपना जन आंदोलन की प्रवृत्ति से भटककर कमरों और कैमरों में कैद हो गए हैं। फिर भी आमजन में वाम पक्ष को लेकर उम्मीदें अभी जिंदा हैं जो विकल्प के रूप में उनकी महती भूमिका के इंतजार में हैं ।  

सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

अकार का नया अंक

अकार का नया अंक नेट पर...

नई सदी के कथाकारों की पहली पीढ़ी पर केन्द्रित अंक

अकार 37

 
"पुनर्वास बस्तियों में लिखी जा रही साहित्य की नई इबारत.."


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के अनतर्गत अकार वर्तमान अंक में पढें....


















जीवेश प्रभाकर
(उप संपादक)

गुरुवार, 30 जनवरी 2014

राहुल गांधी के बहाने

राहुल गांधी के बहाने
जीवेश प्रभाकर

लोकसभा की आहट के साथ ही कॉंग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी का देश के विभन्न क्षेत्रों में दौरा किया जा रहा है ।एक नए तेवर और योजना के साथ वे जगह जगह चौपाल लगा रहे हैं और अपने कार्यकर्ताओं से रूबरू भी हो रहे हैं । हालांकि काफी देर से इसे शुरु किया गया मगर यह काफी कारगर साबित हो सकता है । उल्लेखनीय है कि हाल ही में राहुल गांधी ने लगभग एक दशक के पश्चात एक साक्षात्कार दिया था । यह साक्षात्कार काफी चर्चा में है । देखा जाए तो यह मोदी के लिए एक चुनौती भी है मगर इसे इस रूप में देखने की बजाय यदि ये कहा जाए कि इस साक्षात्कार से राहुल एक नए रूप में सामने आए हैं तो गलत नहीं होगा । कुछ विवादित मुद्दों पर उनके जवाब से बवाल जरूर मचा हुआ है मगर आज की राजनीति में ऐसे विवाद ही चर्चा में रखते हैं । राजनीति में संवाद सबसे जरूरी होता है चाहे उससे विवाद ही क्यों न हो मगर जनता से जुड़ने का यह सबसे बेहतर माध्यम है ।
विगत दिनो संपन्न विधानसभा चुनावों में पूरे देश में कॉंग्रेस की भद पिटी , सिर्फ छत्तीसगढ़ में उनकी साख में कुछ इजाफा हुआ । हालांकि सीटों के लिहाज से कोई फायदा नहीं हुआ मगर भाजपा और कॉंग्रेस में वोट प्रतिशत  का अंतर मात्र 0.7 % रहा जिससे कॉंग्रेस को छत्तीसगढ़ में  आगामी लोकसभा के लिए कुछ उम्मीद नजर आने लगी।  इस  बार के आम चुनाव कॉंग्रेस के लिए काफी मुश्किल भरे होंगे इसकी संभावना ज्यादा है । विगत 10 वर्षों से केन्द्र में सत्तारूढ़ कॉंग्रेस से आम जनता की उम्मीदें टूट चुकी हैं और वो एक नए विकल्प की तलाश में है । हालांकि ऐसा कोई निश्चित और सशक्त विकल्प अब तक जनता के सामने नहीं उभरा है । दिल्ली में सरकार बनाने के पश्चात एक बड़े तबके द्वारा आम आदमी पार्टी से भी काफी उम्मीदें की जाने लगी हैं । निश्चित रूप से विकल्पहीनता से जूझते आम जन के पास नए विकल्प को आजमाने की संभावनाएं जरूर बनती हैं। नरेन्द्र मोदी को आगे कर भाजपा ने अपनी चुनौती पेश की है हालांकि आम जन अभी तक इससे इत्तेफाक रखता दिख नहीं रहा है मगर दिल्ली में केजरीवाल सरकार का ग्राफ जिस तेजी से नीचे की ओर जा रहा है उसके चलते बनती उम्मीदों के टूटने का भय होता जा रहा है । यदि कॉंगेस अपनी गिरती साख बचाने में नाकामयाब रही तो इसका फायदा भाजपा को ही मिलेगा ।  देखा जाए तो यह चुनाव भाजपा के लिए भी सबसे निर्णायक कहा जा सकता है । भाजपा ने नरेन्द्र मोदी के रूप में अपना ब्रहमास्त्र चला दिया है । अगर इस बार के आम चुनाव में मोदी को आशातीत सफलता न मिली तो भाजपा एक लम्बे समय के लिए हाशिए पर जा सकती है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता । वहीं दूसरी ओर राहुल को इस चुनाव में प्रधानमंत्री का दावेदार घोषित न किया जाना कॉंग्रेस की सबसे चतुर रणनीति का परिचायक है । ये सभी जानते हैं कि यदि कॉंग्रेस किसी तौर सरकार बनाने के करीब पहुंच पाई तो निःसंदेह राहुल ही प्रधानमंत्री होंगे ,मगर यदि भाजपा सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत के जरा ज्यादा दूर रह जाती है तो अन्य दलों के समर्थन के लिए संभवतः मोदी को बलि का बकरा बनने से नहीं रोका जा सकता ।
   
आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पूरे देश में कॉंग्रेस के लिए कोई उम्मीद अगर बचती है तो वो सिर्फ बेहतर और सक्षम प्रत्याशी का चयन ही है । राहुल गांधी पूरे देश में कॉंग्रेस के भीतर आंतरिक लोकतंत्र की वकालत करते फिर रहे हैं । साथ ही वे आम आदमी पार्टी का ही फंडा लेकर आम जन से रायशुमारी के भी तमाम हथकंडे अपना रहे हैं जिससे कुछ राहत जरूर मिल सकती है मगर इसे व्यवहार में अमल किया जाना भी जरूरी है । यह एक बेहतर शुरुवात भी कही जा सकती है। एक लम्बे अरसे से पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र पर बहस की बात उठती रही है मगर व्यवहार में यह अब तक संभव नहीं हो सका है । वर्तमान परिदृश्य में अब इसकी सख्त जरूरत महसूस की जाने लगी है । अगर राहुल वास्तव में अपनी पार्टी में ऐसा कर पाते हैं तो निश्चित रूप से यह कॉंग्रेस के लिए संजीवनी की तरह होगी साथ ही अन्य पार्टियों पर भी इसका प्रभाव देखने मिलेगा और भारतीय लोकतंत्र के लिए एक सकारात्मक कदम होगा । 


जीवेश प्रभाकर