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बुधवार, 20 फ़रवरी 2013
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पुस्तक चर्चा--निर्मल वर्मा और उत्तर औपनिवेशिक विमर्श:-- लेखक कृष्णदत्त पालीवाल
निर्मल वर्मा हिंदी आलोचना के लिए विकट चुनौती रहे हैं। उनका समग्र लेखन और अलीकी चिंतन उत्तर-औपनिवेशिक समाज-संस्कृति, धर्म-अध्यात्म, भाषा और दर्शन के बुनियादी प्रश्नों को उनके मूल से उठाता है। इसलिए उनके चिंतन की धार बहुत पैनी है। इन शब्दों के साथ ग्रंथ के दूसरे अध्याय ‘उत्तर-औपनिवेशिक विमर्श के व्योम में’ निर्मल वर्मा के चिंतन के व्योम का वितान तानते हुए उसे अपनी स्मृति में बचाए रखने के सृजनात्मक जतन का डॉ पालीवाल ने बड़ी गहराई से विश्लेषण किया है।
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