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सोमवार, 25 मार्च 2013

न्यायपालिका को जवाबदेह होना चाहिए


देश में लोकतंत्र के तीन तो स्तायी स्तंभ हैं....
कार्यपालिका
व्यवस्थापिका
न्यायपालिका

कार्यपालिका और व्यवस्थापिका पर तो खुलकर बहस होती है मगर
न्यायपालिका पर क्यों नहीं
जबकि हमारे चीफ जस्टिस के दावेदार तक पर महाभियोग चल चुका है ..
और कई न्यायाधीष हैं जो दूध के धुले नहीं हैं....फैसले हमेशा विवादास्पद होते रहे हैं...

क्या आपको नहीं लगता देश में लोकतंत्र के तीन तो स्तायी स्तंभ हैं....
कार्यपालिका
व्यवस्थापिका
न्यायपालिका

कार्यपालिका और व्यवस्थापिका पर तो खुलकर बहस होती है मगर
न्यायपालिका पर क्यों नहीं
जबकि हमारे चीफ जस्टिस के दावेदार तक पर महाभियोग चल चुका है ..
और कई न्यायाधीष हैं जो दूध के धुले नहीं हैं....फैसले हमेशा विवादास्पद होते रहे हैं...

क्या आपको नहीं लगता न्यायपालिका को जवाबदेह होना चाहिए और इसके हर फैसले की खुलकर समीक्षा की जानी चाहिए...
 और इसके हर फैसले की खुलकर समीक्षा की जानी चाहिए...

शनिवार, 23 मार्च 2013

23 मार्च... साझी शहादत


23 मार्च... सांझी शहादत ..
नौजवानो के लिए चिरस्मरणीय दिन...
शहीदों को नमन..


बुधवार, 20 मार्च 2013

कहते हैं आज गौरैया दिवस है...


कहते हैं आज गौरैया दिवस है ...
जब यह कविता लिखी थी तब पता नहीं था..

मंगलवार, 12 मार्च 2013

कविता पोस्टर

कविता पोस्टर

शुक्रवार, 8 मार्च 2013

महिला दिवस पर ...इरोम शर्मिला की कविता


महिला दिवस पर ...

मैं क्या कह सकता हूं ?
..
हर दिन... हर पल संघर्षरत

विश्व की तमाम महिलाओं के नाम....

इरोम शर्मिला की कविता ही सब कहती है........

कांटों की चूडि़यों जैसी बेडि़यों से
मेरे पैरों को आजाद करो
एक संकरे कमरे में कैद
मेरा कुसूर है
परिंदे के रूप में अवतार लेना

कैदखाने की अंधियारी कोठरी में
कई आवाजें आसपास गूंजती हैं
परिंदों की आवाजों से अलग
खुशी की हंसी नहीं
कोई लोरी नहीं

मां के सीने से छीन लिया गया बच्‍चा
मां का विलाप
पति से अलग की गई औरत
विधवा की दर्द-भरी चीख
सिपाही के हाथ से लपकता हुआ चीत्‍कार

आग का एक गोला दीखता है
कयामत का दिन उसके पीछे आता है
विज्ञान की पैदावार से
सुलगाया गया था आग का गोला
जुबानी तजुर्बे की वजह से

ऐन्द्रिकता के दास
हर व्‍यक्ति समाधि में है
मदहोशी-विचार की दुश्‍मन
चिंतन का विवेक नष्‍ट हो चुका है
सोच की कोई प्रयोगशाला नहीं

चेहरे पर मुस्‍कान और हंसी लिए हुए
पहाडि़यों के सिलसिले के उस पार से आता हुआ यात्री
मेरे विलापों के सिवा कुछ नहीं रहता
देखती हुई आंखें कुछ बचाकर नहीं रखतीं
ताकत खुद को दिखा नहीं सकती

इंसानी जिंदगी बेशकीमती है
इसके पहले कि मेरा जीवन खत्‍म हो
दो मुझे अंधियारे का उजाला
अमृत बोया जाएगा
अमरत्‍व का वृक्ष रोपा जाएगा

कृत्रिम पंख लगाकर
धरती के सारे कोने मापे जाएंगे
जीवन और मृत्‍यु को जोड़ने वाली रेखा के पास
सुबह के गीत गाए जाएंगे
दुनिया के घरेलू काम-काज निपटाए जाएंगे

कैदखाने के कपाट पूरे खोल दो
मैं किसी और राह पर नहीं जाऊंगी
मेहरबानी करके कांटों की बेडि़यां खोल दो
मुझ पर इल्‍जाम मत लगाओ
कि मैंने परिंदे के जीवन का अवतार लिया था।
                         0 इरोम शर्मिला

(विष्‍णु खरे द्वारा अंग्रेजी से अनूदित। ‘अनौपचारिका’ अगस्‍त, 2010 से साभार।)

गुरुवार, 7 मार्च 2013

एक कहानी- शरणदाता' - अज्ञेय

www.vikalpvimarsh.in में आज अज्ञेय के जन्मजिवस पर पढ़ें उनकी एक रचना...
शरणदाता' - अज्ञेय
रंफीकुद्दीन का आश्वासन पाकर देविन्दरलाल रह गये। तब यह तय हुआ कि अगर खुदा न करे कोई खतरे की बात हुई ही, तो रंफीकुद्दीन उन्हें पहले खबर भी कर देंगे और हिंफाजत का इंतजाम भी कर देंगेचाहे जैसे हो। देविन्दरलाल की स्त्री तो कुछ दिन पहले ही जालन्धर मायके गयी हुई थी, उसे लिख दिया गया कि अभी न आये, वहीं रहे। रह गये देविन्दर और उनका पहाड़िया नौकर सन्तू। किन्तु यह व्यवस्था बहुत दिन नहीं चली। चौथे ही दिन सवेरे उठकर उन्होंने देखा, सन्तू भाग गया है।...पूरी पढ़ें..

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