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सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

इस बार एक कविता
क्या गलत कह दिया---जसीम मोहम्मद
न्यायमूर्ति काटजू ने कोई नई बात नहींं कही। गुजरात जनसंहार में मोदी का हाथ होना कोई छिपा तथ्य नहींं है। न्यायमूर्ति काटजू ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए उक्त तथ्य को उजागर किया। गुजरात दंगों की वजह से बेघर हुए बहुत से लोगों की त्रासदी अभी खत्म नहींं हुई है। पिछले दिनों राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने राज्य के छियालीस में से सत्रह शरणार्थी शिविरों का दौरा करने के बाद कहा कि दंगा पीड़ित पांच हजार से अधिक परिवार आज भी अत्यंत अमानवीय परिस्थितियों में रहने को मजबूर हैं।........पूरा पढ़ें....
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शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

पुस्तक चर्चा में निर्मल वर्मा और उत्तर औपनिवेशिक विमर्श

पुस्तक चर्चा में 
निर्मल वर्मा और उत्तर औपनिवेशिक विमर्श:-- लेखक कृष्णदत्त पालीवाल
निर्मल वर्मा हिंदी आलोचना के लिए विकट चुनौती रहे हैं। उनका समग्र लेखन और अलीकी चिंतन उत्तर-औपनिवेशिक समाज-संस्कृति, धर्म-अध्यात्म, भाषा और दर्शन के बुनियादी प्रश्नों को उनके मूल से उठाता है। इसलिए उनके चिंतन की धार बहुत पैनी है। इन शब्दों के साथ ग्रंथ के दूसरे अध्याय ‘उत्तर-औपनिवेशिक विमर्श के व्योम में’ निर्मल वर्मा के चिंतन के व्योम का वितान तानते हुए उसे अपनी स्मृति में बचाए रखने के सृजनात्मक जतन का डॉ पालीवाल ने बड़ी गहराई से विश्लेषण किया है।....पढ़ें...

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

समकालीन विमर्श का एक महत्वपूर्ण पोर्टल


समकालीन विमर्श का एक महत्वपूर्ण पोर्टल

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समकालीन विमर्श का एक महत्वपूर्ण पोर्टल शुरु किया है जिसमें समसामयिक मुद्दों पर सार्थक नए आलेखों के साथ साथ विभिन्न माध्यमों में प्रकाशित स्तरीय आलेखों का साभार प्रकाशन  किया जाता है ।
कृपया हमारी वेबसाइट www.vikalpvimarsh.in पर जाएं और अपने सुझाव दें ताकि इसे और भी बेहतर बनाया जा सके ।
संपादक
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www.vikalpvimarsh.in में पढ़ें हिंदी की खातिर--गिरिराज किशोर


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हिंदी की खातिर--गिरिराज किशोर
आज सब भारतीय भाषाएं संकट में हैं। मैकाले द्वारा रोपे अंग्रेजी के बिरवे को नेहरू जी ने हिंदी और भारतीय भाषाओं की अस्मिता की खाद देकर छतनार वृक्ष बना दिया! उसके साए में सब भारतीय भाषाएं अपने पत्ते झारने के लिए मजबूर हैं। आज दूसरी भाषाएं भी अंग्रेजी के आतंक से पीड़ित हैं। बाहर भले ही अंग्रेजी बोल कर खुश हो लेते हों, पर दिलों में यह आतंक व्याप्त है कि हमारी भाषा का क्या होगा। उनके बच्चे भी अंग्रेजी में बोलना सम्मान की बात समझते हैं। अगर हमें अपनी पहचान को जिंदा रखना है तो हमें टंडन जी, मैथिलीशरण गुप्त, निराला और न्यायमूर्ति प्रेमशंकर गुप्त जैसे समर्पित लोगों का अनुकरण करना होगा। ....
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बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

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गंगा और देश की नदियां--प्रभाकर चौबे
गंगा के जल को प्रदूषित किसने किया। गंगाजल तो निर्मल था, सालों बंद बोतल में रखे रहने पर भी गंदा नहीं होता था। अब घोर आस्थावान, साधू, महंत, मठाधीश भी ऐसा कह रहे हैं कि गंगा का पानी अब स्नान के लायक नहीं रहा। गंगाजल को मुंह में रखने की इच्छा नहीं होती। इस स्वच्छ जल को गंदा किसने किया। आम जनता ने तो किया नहीं। सबको पता है, कि गंगाजल को गंगा किनारे बसे बड़े-बड़े शहरों में स्थापित उद्योगों ने प्रदूषित किया है।.....पढ़ें...
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पुस्तक चर्चा--निर्मल वर्मा और उत्तर औपनिवेशिक विमर्श:-- लेखक कृष्णदत्त पालीवाल
निर्मल वर्मा हिंदी आलोचना के लिए विकट चुनौती रहे हैं। उनका समग्र लेखन और अलीकी चिंतन उत्तर-औपनिवेशिक समाज-संस्कृति, धर्म-अध्यात्म, भाषा और दर्शन के बुनियादी प्रश्नों को उनके मूल से उठाता है। इसलिए उनके चिंतन की धार बहुत पैनी है। इन शब्दों के साथ ग्रंथ के दूसरे अध्याय ‘उत्तर-औपनिवेशिक विमर्श के व्योम में’ निर्मल वर्मा के चिंतन के व्योम का वितान तानते हुए उसे अपनी स्मृति में बचाए रखने के सृजनात्मक जतन का डॉ पालीवाल ने बड़ी गहराई से विश्लेषण किया है।...
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मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

ट्रेड यूनियनों का संघर्ष काफी पुराना है-

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नवउदारवादी नीतियों के खिलाफ ट्रेड यूनियनों का संघर्ष काफी पुराना है-अरुण कान्त शुक्ला
20 एवं 21 फरवरी को होने वाली यह पंद्रहवीं हड़ताल दुनिया के कोने कोने में नवउदारवादी नीतियों के खिलाफ चल रहे संघर्षों का हिस्सा है। इसमें केवल मजदूरों की मांगें नहीं हैं, यह हड़ताल देश के उन करोड़ों लिए है , जो रात दिन खटते हैं लेकिन दो जून की रोटी सम्मान के साथ जुटा पाना जिनके लिए दुश्वार होता है। यह नवउदारवादी नीतियों के खिलाफ कामगारों गुस्सा है

समकालीन विमर्श का एक महत्वपूर्ण पोर्टल


समकालीन विमर्श का एक महत्वपूर्ण पोर्टल शुरु किया है जिसमें समसामयिक मुद्दों पर सार्थक नए आलेखों के साथ साथ विभिन्न माध्यमों में प्रकाशित स्तरीय आलेखों का साभार प्रकाशन  किया जाता है ।
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सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

www.vikalpvimarsh.in समकालीन विमर्श का एक महत्वपूर्ण पोर्टल



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शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

पुस्तक चर्चा---किस्सा कोताह- लेखक राजेश जोशी


समकालीन विमर्श का एक महत्वपूर्ण पोर्टल शुरु किया है जिसमें समसामयिक मुद्दों पर सार्थक आलेखों का प्रकाशन किया जाएगा । इसमें स्तंत्र एवं अप्रकाशित लेख / जानकारियों के अलावा  अन्य वेबसाइट/ ब्लॉग एवं प्रिंट मीडिया में प्रकाशित महत्वपूर्ण जानकारियां एवं आलेख  भी साभार प्रकाशित किए जाते हैं । कृपया हमारी वेबसाइट www.vikalpvimarsh.in पर जाएं और अपने सुझाव दें ताकि इसे और भी बेहतर बनाया जा सके

इस बार पुस्तक चर्चा में पढ़ें..
पुस्तक चर्चा---किस्सा कोताह- लेखक राजेश जोशी
किस्सा कोताह किस विधा की रचना है इसे पढ़ते हुए हमारे सामने सबसे पहले यह सवाल आता है। राजेश जोशी खुद भी इस सवाल से जूझते हैं परंतु अपने अंदाज से। वे कहते हैं "मसलन यह उपन्यास नहीं है, आत्मकथा नहीं है, शहरगाथा नहीं है और कोरी गप्प भी नहीं है। लेकिन इन्हीं तमाम चीजों की गपड़तान से बनी एक किताब है।' पुस्तक के अंदर के पृष्ठ पर शीर्षक के साथ लिखा गया है "एक गप्पी का रोजनामचा'। रोजनामचा डायरी भी हो सकती है मगर यह पुस्तक आत्मकथा के नजदीक है। 

जीवेश प्रभाकर
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