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गुरुवार, 9 मई 2013

कर्नाटक चुनाव और मीडिया


कर्नाटक चुनाव और मीडिया
कर्नाटक चुनाव के नतीजे आए और अपेक्षा के अनुरूप कॉंग्रेस जीत गई । यह हालांकि कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि हमेशा की तरह कॉर्पोरेट पोषित मीडिया एक बार फिर अपनी पूरी ताकत के साथ भाजपा के पक्ष में खड़ा दिखाई दिया मगर हास्यास्पद रूप से ख़ड़ा हुआ ये देखकर जरूर कुछ अटपटा लगा । दरअसल जो नतीजे आए उसकी कल्पना पीडिया ने भी नहीं की थी । कॉंग्रेस के क्लीन स्वीप की भविष्यवाणी जरूर थी मगर मीडिया को उम्मीद थी कि भजपा वोट प्रतिशत के मामले में कुछ राहत पाएगी जिसकी बिला पर मीडिया अपने पोषक आकाओं की लाज बचा ले जाएगा । कर्नाटक के वोट प्रतिशत पर नजर डालें तो इस बार भजपा 2008 की तुलना में  लगभग आधे यानि 17 प्रतिशत  से कुछ ज्यादा पर सिमट गई । येदुरप्पा को किंगमेकर बनाने पर तुले मीडिया को पता होना चाहिए कि येदी की पार्टी को महज 4 % वोट ही मिले और यदि इसे भजपा के साथ जोड़ भी दिया जाए तो भी कुल जमा वोट देवगौड़ा साहब की पार्टी से भी कम होते हैं । सबसे चकित कर देने वाला परिणाम देवगौड़ा की जनता दल सेक्युलर पार्टी के पक्ष में गया जिसे जनता ने भाजपा से ज्यादा प्राथमिकता देते हुए 23 प्रतिशत मत दिया ।  कॉंग्रेस को लगभग 8 फ्रतिशत का लाभ हुआ और उसका वोट प्रतिशत 42 के करीब पहुंच गया । इन सबके बावजूद मीडिया अपनी पूरी ताकत भाजपा को बचाने में लगा रखी । रही बात भाजपा की तो ये साफ है कि भाजपा अपनी लगातार  हार ( हिमाचल, उत्तराखंड, असम, बंगाल ,और झारखंड में छीछालेदर के पश्चात कर्नाटक ) से  मोदी को प्रोजेक्ट करने के अपने इरादे पर काफी पशोपोश में आ गई है क्योंकि तथ्य ये है कि इन सभी राज्यों में चुनाव प्रचार के लिए मोदी भी गए थे ।.  यह सब देखते हुए इस बात को समझने में ज्यादा परेशानी नहीं है कि चैनल पूरी तरह भाजपा की ओर झुके रहते हैं । जो मीडिया गुजरात के चुनाव को देश के लिए दिशा निर्धारित करने वाला सिद्ध करते नहीं थकता वो कर्नाटक चुनाव को महज प्रदेश तक सीमित कर देने में अपनी पूरी ताकत झोंक देता है । आखिर इस पक्षधरता के पीछे क्या है ? इस तरह की पक्षधरता मीडिया की भूमिका को और संदिग्ध और संदेहास्पद बनाती है ।