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शनिवार, 13 अप्रैल 2013

आज बैसाखी है...ज़रा याद करो कुर्बानी....


ज़रा याद करो कुर्बानी....
आज बैसाखी है और आज हम बेगुनाहों की शहादत को नमन करते हुए अंग्रेजों की क्रूरता को सामने लाना चाहते हैं जो आज तक इस बेरहम हत्याकांड पर माफी तक नहीं मांग सके....

13 अप्रैल 1919 बैसाखी का दिन था और हजारों सिख श्रद्धालु जलियांवाला बाग के पास हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे में खालसा पंथ के गठन को याद करने पहुंचे थे. पूजा के बाद श्रद्धालु जलियांवाला बाग में जमा हुए. बाग के चारों ओर ईंट की दीवार बनी है. बाग में एक कुआं भी है. माना जाता है कि वहां 15 से 20 हजार लोग मौजूद थे.अंग्रेजों को जलियांवाला बाग में लोगों का जमा होना संदिग्ध लगा. लोगों को तितर बितर करने के मकसद से अमृतसर में तैनात ब्रिगेडियर जनरल डायर अपने 50 बंदूकधारी सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग पहुंचे. उनके पास मशीन गन वाले टैंक भी थे, लेकिन बाग के संकरे दरवाजे से इन्हें ले जाने में दिक्कत आ रही थी जिस वजह से उन्हें बाहर छोड़ दिया गया. अंदर जनरल डायर ने लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाने का आदेश दिया. दीवार से घिरे बाग से भागने का लोगों के पास चारा नहीं था जिस वजह से कई लोग गोलियों का शिकार बने. बहुत लोग कुएं में कूदकर मारे गए. उस वक्त अंग्रेजी शासन ने मृतकों की संख्या 400 बताई, लेकिन गोलियों के शिकार लोगों की संख्या 2,000 से भी ज्यादा थी....बाद में शहीद उधम सिंह ने इसका बदला लिया...