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शनिवार, 5 मार्च 2016

सारे जवाब कन्हैया को ही देना है तो कन्हैया को प्रधानमन्त्री ही बना दो.....

 ( तसल्लियों के इतने साल बाद अपने हाल पर
 निगाह डाल सोच और सोचकर सवाल कर....)

एक कन्हैया से इतने सवाल जवाब? पता नहीं कौन कौन कन्हैया से क्या क्या सवाल कर रहा है और किस किस के जवाब मांग रहा है । लगातार वाटस एप पर गंदी और घटिया भाषा के साथ तथाकथित देशभक्त सवाल कर रहे हैं । गालियां दे रहे हैं..... कोई तो जीभ काट लेने तक की बात कर रहा है..... आखिर वे इतने विचलित क्यों हो गए ? क्यों लगने लगा ख़तरा ,ऐसा क्या हुआ कि पूरा तंत्र हिल गया । दरअसल ये इनकी बोखलाहट का परिचायक है खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे ।
वैसे इन्हें जवाब देने की कोई ज़रुरत नहीं लगती । क्योंकि वो जिनसे सारे सवाल पूछे जाने चाहिए, यानी कि प्रधानमंत्री , वो तो संसद में पूछे गए सवालों पर मिमिक्री करते हैं , विषयांतर करते रहते हैं..... और दूसरी ओर उनके चेले चपाटी कन्हैया से सवाल जवाब करते हैं । अरे भई इतना ही जवाबदेह मानते हो कन्हैया को तो उसे ही प्रधानमंत्री बना दो।
प्रधानमन्त्री तो पठानकोट, हरियाणा,रोहित मेहुला, जे एन यु, दादरी और यहाँ तक कि नक्सली वारदातो पर एक शब्द भी नहीं कहते। राहुल गांधी पर तंज कसते हैं , क्या इनकी सारी जवाबदेही राहुल गांधी से ही है? जनता के प्रति कुछ नहीं ? स्मृति इरानी के झूठ के पुलंदों पर सत्यमेव जयते कहते हैं और जब झूठ का पर्दाफ़ाश होता है तो चुप्पी साध लेते हैं । गृह मंत्री अपने राज्यमंत्री के भडकाऊ भाषण को खुद क्लीन चिट दे देते हैं ।
कितने ही सवाल हैं जिसका जवाब वर्तमान सत्ताधारी पार्टी को देने चाहिए, क्योंकि वह जनता द्वारा चुनी हुई सरकार है जो जनता के प्रति जवाबदेह है ।
कन्हैया कौन है ? एक विश्वविद्यालय का अध्यक्ष । उसकी अपनी विचारधारा है । आप उससे सवाल पूछने वाले हैं कौन ? आप उससे सहमत हों / असहमत हों ये आपका अधिकार है ,आपकी सोच है। दम है तो सरकार से पूछें कि पिछले 18 महीनों में क्या किया ।मनमोहन सिंह को मौनमोहन कहने वाले खुद क्यों चुप्पी साध लिए हैं ।
टैक्स पेयारों के सारे सवाल कन्हैया से ही क्यों / मोदी से क्यों नहीं ?
मेहनतकशों की जमापूंजी के लाखों करोड़ कोर्पोरेटों को देकर फिर डूबत में डाल देने वाले बैंकों को टैक्स पेयारों के 25000 करोड़ का अनुदान सरकार कैसे दे रही है ? ये क्यों नहीं पूछते सो काल्ड टैक्स पेयर ?
और हां
बात बात पर 60 -70 साल का इतिहास न लायें । आपको 30 साल बाद इसीलिए तो पूर्ण बहुमत दिया है जनता ने कि कुछ बदलाव लाओगे । और वैसे भी हम , जो आपके अनुसार देश की 65 फ्रतिशत आबादी, पिछले 25 साल की ही पीढ़ी हैं । इसमें 15 साल कांग्रेस ने राज किया तो 8 साल आपके भी राज के हैं । हम इन्ही बरसों का जवाब मांगेंगे ।


सवाल तो हमको पूछना है ।
जवाब तो हमें चाहिए.....


बकौल शलभ श्रीराम.....
तसल्लियों के इतने साल बाद अपने हाल पर
निगाह डाल सोच और सोचकर सवाल कर
किधर गए वो वायदे सुखों के ख़्वाब क्या हुए
तुझे था जिनका इन्तज़ार वो जवाब क्या हुए
तू इनकी झूठी बात पर
ना और ऐतबार कर
के तुझको साँस-साँस का सही हिसाब चाहिए
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए
नफ़स-नफ़स क़दम-क़दम बस एक फ़िक्र दम-ब-दम
जवाब-दर-सवाल है के इन्क़लाब चाहिए ( शलभ श्रीराम की कविता के अंश)


बात निकलेगी तो दूरतलक जायेगी बिरादर.......

( जीवेश प्रभाकर)





रविवार, 3 जनवरी 2016

लाल सलाम कामरेड बर्धन ( 25 सितम्बर 1924 - 2 जनवरी 2016 )

92 वर्षीय वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता कामरेड ए बी बर्धन का 2 जनवरी 2016 की रात निधन हो गया । 25 सितम्बर 1924 को जन्मे कामरेड बर्धन का पूरा नाम अर्देन्न्दु भूषण बर्धन था । कामरेड बर्धन निसंदेह वाम आंदोलन के इस दौर के राजनीतिक और वैचारिक रूप में सबसे समृद्ध ,सुलझे और सशक्त नेता रहे । भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पहले उप महासचिव रहे और फिर कामरेड इन्द्रजीत गुप्ता के बाद 1996 से 2012 तक राष्ट्रीय महासचिव रहे कामरेड बर्धन 92 साल के हो जाने के बाद भी लगातार भारतिय कम्युनिस्ट पार्टी के सबसे अधिक सक्रिय और लोकप्रिय नेता रहे। उनकी भाषण शैली और वाकपटुता लाजवाब थी। उन्होंने देश के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी सक्रीय रूप से भाग लिया था । वामपंथी आंदोलन के प्रति उनका झुकाव 1940 से भी पहले से हो गया था । 1940 में नागपुर में कामरेड बर्द्धन ए आई एस एफ में शामिल हुये और इस छात्र संगठन के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव के ओहदे तक कार्य किया। छात्र जीवन में ही वह कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े एवं नागपुर विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष भी रहे साथ ही वे स्वाधीनता आंदोलन में भी शामिल हुए । वामपंथी आंदोलन से प्रभावित होकर बर्धन कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए । आज़ादी के पश्चात से ही वे मजदूर मोर्चे पर सक्रिय हो गए। कामरेड बर्धन ऑल इंडिया डिफ़ेन्स इम्पलॉइज़ एसोसिएशन के उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी फ़ेडरेशन और ऑल इंडिया इलेक्ट्रिक इम्पलॉइज़ फ़ेडरेशन के अध्यक्ष रहे थे। जिस ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना लाला लाजपत राय ने की थी, कामरेड बर्धन लम्बे अरसे तक उसके महामंत्री भी रहे थे । उन्होंने 'आल इंडिया फेडरेशन आफ इलेक्ट्रिसिटी इम्प्लाईज़' को पुनर्जीवित किया जिसकी स्थापना वयोवृद्ध मजदूर नेता श्री वी वी गिरी ने की थी । महाराष्ट्र ए आई टी यू सी के वह अध्यक्ष भी रहे।कामरेड बर्धन महाराष्ट्र में काफी लोकप्रिय रहे । वह कुछ साल तक महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य भी रहे थे । सात दशक के लम्बे राजनैतिक संघर्षों और वाम आन्दोलन के बड़ा नेता होने के बावज़ूद बर्धन ने जिस सादगी और सरलत़ा से अपनी ज़िंदगी बिताई आज के राजनीतिज्ञों के लिए एक मिसाल है । 1986 में पत्नी पद्मा के निधन के पश्चात कामरेड ए बी बर्धन नई दिल्ली स्थित भाकपा मुख्यालय में ही रहते थे । उनका सादा जीवन इस बात का सशक्त उदाहरण है कि राजनीति का मतलब स्वार्थ नहीं होता है, इसका मतलब जनसेवा और राजनीतिक परिवर्तन है ।कामरेड बर्धन का साहित्य के प्रति भी काफी रुझान था वे प्रगतिशील और जनवादी साहित्य व् इप्टा जैसे नाट्य संघटनो की भूमिका को सामाजिक परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण आन्दोलन मानते थे। देश की राजनीति में वामपंथी रुझान को मजबूती देने में कामरेड बर्धन की बड़ी भूमिका थी। उनके अंदर प्रगतिशील विचारधारा और सामाजिक परिवर्तन को आगे ले जाने की जो दृढ़ता थी वह एक बहुत बड़ा गुण था, जिसे हम सबको सीखने और आगे ले जाने की ज़रूरत है।उनका जाना वामपंथी आंदोलन के साथ साथ देश में प्रगतिशील जनवादी आन्दोलन और धर्मनिरपेक्ष राजनीति के लिए बहुत बड़ा नुक़सान है । 
कामरेड बर्धन को लाल सलाम 

जीवेश प्रभाकर