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शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

हाल- फिलहाल--- जीवेश प्रभाकर


तमाम व्यस्तताओं और नियमित झंझावतों से जूझते, हर साल की तरह यह साल भी निकल जाता मगर साल के मध्य में हुए आम चुनाव ने वर्ष 2014 की महत्ता बढ़ा दी । 30 वर्षों के पश्चात देश में किसी एक राजनैतिक दल ने केन्द्र में अपना स्पष्ट बहुतमत हासिल किया यह तो विशेष बात है ही मगर उससे भी यादा चौकानेवाली बात यह है कि देश के दो तिहाई मतदाओं की खिलाफत के बावजूद 30 प्रतिशत मत प्राप्त कर भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया । लोकतंत्र में जनता द्वारा चुनी गई सरकार सभी को मान्य होनी ही चाहिए । कांग्रेसइतिहास में  अपने सबसे निम्नतम स्तर पर है और जनता में कांग्रेस को लेकर अब तक नाराजगी है । विगत 10 वर्षों से सत्ता में काबिज काँग्रेस सरकार आम जनता से यादा कॉर्पोरेट की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी ।वैश्वीकरण और उदारीकरण की रफ्तार कम होने से पूरा कॉर्पोरेट जगत नाराज था जिसका खामियाजा कॉग्रेस को भुगतना पड़ा ।
      अब भारतीय जनता पार्टी सत्ता मे ंहै और विगत 6महीने के कार्यकाल से  ये  कॉग्रेसों की ही नीतियों को आगे बढ़ा रही है । पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कॉग्रेस की जिन नीतियों की भारतीय जनता पार्टी जितनी आलोचना और विरोध करती रही वो सत्ता में आने के पश्चात उन्हीं नीतियों को कड़ाई से लागू करने पर आमादा हो गई है । आम जनता हतभ्रत है । उदारीकरण और वैश्वीकरण की प्रक्रिया को जिस तेजी से यह सरकार आगे बढ़ा रही है उसे देखते हुए लगता है कि शीघ्र ही देश के तमाम संसाधनों को निजी हाथों में सौंप दिया जाएगा । इन 6 महीनों में न तो संसद ठीक से चल पाई न किसी विधेयक पर चर्चा ही हो सकी मगर मौजूदा सरकार सभी सुधारों को अध्यादेश के जरिए लागू करने पर आमादा हो गई है । बीमा विधेयक हो या कोल विधेयक हर क्षेत्र में सरकार अध्यादेश लाकर हर क्षेत्र में कॉर्पोरेट के दबाव में दिखलाई दे रही है । कोल क्षेत्र में लगभग 35 वर्षों के पश्चात जबरदस्त हड़ताल शुरू हुई है इसका क्या नतीजा होगा यह आने वाला वक्त बताएगा ।
      इधर नए साल में छत्तीसगढ़ में विगत 11 वर्षों से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को निकाय चुनावों में जबरदस्त झटका लगा है । प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह  के लिये निकाय चुनावों के परिणाम चिन्ताजनक हैं । चुनाव पूर्व प्रदेश से काँग्रेस का सफाया कर देने का दावा खोखला साबित हुआ । दूसरी ओर  काँग्रेस केदिग्गज नेता अजीत जोगी के लिये भी ये परिणाम कम चौंकाने वाले नहीं है । चुनाव के दौरान अजीत जोगी ने कांग्रेस प्रचार से खुद को दूर कर लिया था । हालांकि अब वे कह रहे हैं कि उन्होंने बिलासपुर से खुद को हटाया था मगर यह सच नहीं है । कांग्रेस के लिये यह चुनाव काफी दिनों बाद बहार की तरह आए हैं । प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल और नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव के लिए यह काफी राहत की बात है कि जब पूरे देश में काँग्रेस का जनाधार कम हुआ है वही छत्तीसगढ़ में गत वर्ष हुए विधानसभा चुनाव के पश्चात काँग्रेस की पकड़ मजबूत हुई । इसे दोनों ही नेताओं की अपनी समझ और तालमेल का परिणाम कहा जा सक ता है । देखने वाली बात ये है कि वे इसे आगे कितना साधे रख पाते हैं । चूंकि पंचायत चुनावों के पश्चात आगामी 4 वर्षों तक कोई चुनाव नहीं होने वाले तो कांग्रेस के लिए इन चार वर्षों तक यह उत्साह व तालमेल बनाए रखना चुनौती होगी । हाल के महीनों में काँग्रेस ने पूरी एकजुटता में जनाहित के मुद्दों को उछालकर आम जनता में अपनी पैठ बनाने में कामयबी हासिल की है । जिसे लगातार जारी रखने की आवश्यकता होगी । सबसे चौकाने वाले परिणाम बिलासपुर के कहे जा सकेत है । बिलासपुर में हाल ही में हुए नसबंदी कांड और नवजात शिशुओं की लगातार मौतो ने पूरे प्रदेश को दिलाकर रख दिया और इसी मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने पूरे प्रदेश में प्रदर्शनों के बल पर जनता में अपनी पैठ बनाई । मगर यह आश्चर्यजनक ही कहा जाएगा। कि बिलासपुर वासियों ने अपने शहर में सिर्फ महापौर बल्कि पार्षदों के रूप में भी बड़ी संख्या में भारतीय जनता पार्टी को चुनकर एक तरह से लगातार आरोप झेल रहे मंत्री अमर अग्रवाल को क्लीन चिट दे दी है । निश्चित रूप से इन परिणामों के आधार पर अमर अग्रवाल पर किसी तरह की संगठनात्मक कार्यवाही की अपेक्षा संभव नहीं है ।
      भारतीय जनता पार्टी और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को सबसे बड़ा झटका तो राजधानी रायपुर में लगा जहाँ इस बार भी काँग्रेस का मेयर चुनकर आ गया । भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पसंदीदा प्रत्याशी सच्चिदानंद उपासने को काँग्रेस के युवा प्रत्याशी प्रमोद दुबे ने बड़े अन्तर से हराकर राजधानी में एक बार फिर मेयर पद पर काँग्रेस का कब्जा बरकरार रखा । प्रमोद दुबे की जीत निश्चित रूप से उनकी अपनी छवि के कारण ही हुई । चुनाव के दौरान कांटे का मुकाबला होने के कयास लगाए जा रहे थे मगर नतीजों ने तमाम पूर्वानुमानो को ध्वस्त करते हुए प्रमोद दुबे निर्विवाद रूप से मजबूती के साथ विजयी हुए । इस परिणाम को लेकर भारतीय जनता पार्टी में संगठन स्तर पर भीतरघात की आशंका पर मंथन किया जा रहा है जिससे इन्कार नहीं किया जा सकता मगर यह मानना ही होगा कि इस बार काँग्रेस ने एकजुटता का परिचय दिया और संगठित होकर न रायपुर में जीत हासिल की ।
      राजनैतिक गतिविधियों से इतर गत माह सरकार द्वारा राजधानी में रायपुर साहित्य महोत्सव का आयोजन किया गया । इस 3 दिवसीय आयोजन में देश भर के साहित्यकारों ने हिस्सा लिया । अन्य महोत्सवों की तरह इस महोत्.व में भीआमंत्रितों को सभी तरह की  सरकारी सुविधाएं दी गईं। साथ ही सभी साहित्यकारों को संभवत: पहली बार मानदेय भी दिया गया । नए रायपुर के पुरखौती मुक्तांगन में आयोजित महोत्सव में कई सत्र आयोजित किए गए । इस महोत्सव की गूंज पूरे देश में रही । कुछ साहित्यकारों की उपस्थिति और कई नामचीन लोगों के न आने की चर्चा काफी दिनो तक होती रही । हालांकि छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों में ऐसे किसी विवाद को बल नहीं मिला मगर राष्ट्रीय स्तर पर इस आयोजन को लेकर लम्बे वाद- विवाद होते रहे और कमोबेश अभी तक जारी है । खैर यह सरकार की अपनी पहल और योजना है जिस पर कोई बहस की गुंजाइश नहीं है ,क्योंकि  हर निर्वाचित सरकार को अपनी योजनाओं पर अमल का अधिकार है । दूसरी ओर ऐसे महोत्सवों में शामिल होने  या न होने का निर्णय भी साहित्यकार की व्यक्तिगत सोच और समझ का मामला है । उम्मीद है सरकार इस तरह के आयोजन हर वर्ष करती रहेगी ।
      नए साल के आंगाज् ा के साथ ही कई स्मृतियां दिमाग में कौध जाती हैं । हर नए साल में सुप्रसिद्ब रंगकर्मी सफदर हाशमी की शहादत कौंध जाती है । और इस वर्ष सफदर की शहादत को 25 वर्ष हो रहे हैं । इन पच्चीस वर्षो में कट्टरपंथ और असहिष्णुता में लगातार इजाफा होता गया है । अभिव्यक्ति की आजादी पर संकट बढ़ता ही जा रहा है । हाल ही में फ्रांस में कट्टर मुस्लिम पंथियों ने मीडिया की आजादी या कहे अभियांत्रिकी स्वतंत्रता पर कातिलाना हमला करते हुए संपादक, पत्रकार एवं कार्टूनिस्टों सहित करीब 12 लोगों को बेतहाशा फायरिंग करते हुए मौत के घाट उतार दिया । हमलावर मुस्लिम कट्टरपंथी थे और वे पत्रिका में प्रकाशित कार्टून से खफा थे । एक सभ्य समाज की कल्पना को ऐसे सांप्रदायिक व कट्टरपंथी आतंक के साए में नेस्तनाबूद कर देना चाहते हैं । पूरे विश्व में धार्मिक कट्टरवाद और असहिष्णुता तेजी से पैर पसार रही है । 21 वीं सदी में जहां मानव विकास के नए नए आयाम गढ़े जा रहे हैं, विज्ञान रोजाना ्नई उँचाईयों को छू रहा है वही दूसरी ओर चंद साप्रदायिक, धार्मिक कट्टरपंथी पूरे विश्व व मानव समाज को पुन: अंधे व बर्बर युग की ओर धकेलने के प्रयास में लगे हैं । इस वक्त पूरी सभ्यता दो राहे पर खड़ी है । एक ओर समता व शांति के पक्षधर है जो तादाद में काफी कम है तो दूसरी ओर विशाले प्रतिगामी ताकते पूरी सभ्यता को तहसनहस कर देना चाहती हैं । खतरा सिर्फ सांप्रदायकि ताकतों से नहीं बल्कि आर्थिक ताकतों से भी है जो पूरे विश्व की दबी कुचली गरीब जनता को अंधी खाई में धकेलकर खुद समृद्ध हो जाना चाहती है । चंद मुट्ठी भर कॉपोरेट पूरी दुनिया में 85 प्रतिशत संसाधनों पर कब्जा जमाए बैठे हैं । उनकी भूख ख्तम होने की बजाय लगातार बढ़ती ही जा रही है । ऐसे दौर में सभी को एकजुट होकर प्रतिरोध में सामने आना होगा एक बेहतर दुनिया के निर्माण के लिए ...