देश में लोकतंत्र के तीन तो स्तायी स्तंभ हैं....
कार्यपालिका
व्यवस्थापिका
न्यायपालिका
कार्यपालिका और व्यवस्थापिका पर तो खुलकर बहस होती है मगर
न्यायपालिका पर क्यों नहीं
जबकि हमारे चीफ जस्टिस के दावेदार तक पर महाभियोग चल चुका है ..
और कई न्यायाधीष हैं जो दूध के धुले नहीं हैं....फैसले हमेशा विवादास्पद होते रहे हैं...
क्या आपको नहीं लगता देश में लोकतंत्र के तीन तो स्तायी स्तंभ हैं....
और इसके हर फैसले की खुलकर समीक्षा की जानी चाहिए...
कार्यपालिका
व्यवस्थापिका
न्यायपालिका
कार्यपालिका और व्यवस्थापिका पर तो खुलकर बहस होती है मगर
न्यायपालिका पर क्यों नहीं
जबकि हमारे चीफ जस्टिस के दावेदार तक पर महाभियोग चल चुका है ..
और कई न्यायाधीष हैं जो दूध के धुले नहीं हैं....फैसले हमेशा विवादास्पद होते रहे हैं...
क्या आपको नहीं लगता देश में लोकतंत्र के तीन तो स्तायी स्तंभ हैं....
कार्यपालिका
व्यवस्थापिका
न्यायपालिका
कार्यपालिका और व्यवस्थापिका पर तो खुलकर बहस होती है मगर
न्यायपालिका पर क्यों नहीं
जबकि हमारे चीफ जस्टिस के दावेदार तक पर महाभियोग चल चुका है ..
और कई न्यायाधीष हैं जो दूध के धुले नहीं हैं....फैसले हमेशा विवादास्पद होते रहे हैं...
क्या आपको नहीं लगता न्यायपालिका को जवाबदेह होना चाहिए और इसके हर फैसले की खुलकर समीक्षा की जानी चाहिए...
व्यवस्थापिका
न्यायपालिका
कार्यपालिका और व्यवस्थापिका पर तो खुलकर बहस होती है मगर
न्यायपालिका पर क्यों नहीं
जबकि हमारे चीफ जस्टिस के दावेदार तक पर महाभियोग चल चुका है ..
और कई न्यायाधीष हैं जो दूध के धुले नहीं हैं....फैसले हमेशा विवादास्पद होते रहे हैं...
क्या आपको नहीं लगता न्यायपालिका को जवाबदेह होना चाहिए और इसके हर फैसले की खुलकर समीक्षा की जानी चाहिए...