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बुधवार, 18 मार्च 2015

रायपुर टॉकीज प्रस्तुति

रायपुर टॉकीज का आयोजन---- सरोकार का सिनेमा....
आगामी 8- 9 अप्रैल को वृंदावन हॉल, रायपुर में....
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शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

कामरेड गोविंद पानसारे को लाल सलाम ...........

मगर उनका ज़स्बा और विचारधारा अजर अमर है कामरेड मरते नहीं हैं दुश्मन ये जान ले .....

कामरेड गोविंद पानसारे को लाल सलाम ...........

गोलियों से तेज चलते हैं विचार
मैं घिरा हुआ हूं
असंख्य आतताइयों से
जो भून देना चाहते हैं मुझे
पहले ही वार में ,
बारूद के असीमित जखीरे के मुकाबिल
विचारों से लैस हूं मैं,यथासंभव ।
जंग जारी है
विचार और औजार की
हर मोर्चे पर
सदियों से अनवरत,असमाप्य ।
मैं जानता हूं , कि ऊ र्जा
हुए जाते हैं विचार ,और
कहीं ज्यादा भयभीत हुए जाते हैं वो,
जो छलनी कर देना चाहते हैं मुझे ।
पर मैं आश्वस्त हूं
कि ऊर्जा अविनाशी है, और
गोलियों से तेज चलते हैं विचार ।
जीवेश प्रभाकर..

शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

हाल- फिलहाल--- जीवेश प्रभाकर


तमाम व्यस्तताओं और नियमित झंझावतों से जूझते, हर साल की तरह यह साल भी निकल जाता मगर साल के मध्य में हुए आम चुनाव ने वर्ष 2014 की महत्ता बढ़ा दी । 30 वर्षों के पश्चात देश में किसी एक राजनैतिक दल ने केन्द्र में अपना स्पष्ट बहुतमत हासिल किया यह तो विशेष बात है ही मगर उससे भी यादा चौकानेवाली बात यह है कि देश के दो तिहाई मतदाओं की खिलाफत के बावजूद 30 प्रतिशत मत प्राप्त कर भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया । लोकतंत्र में जनता द्वारा चुनी गई सरकार सभी को मान्य होनी ही चाहिए । कांग्रेसइतिहास में  अपने सबसे निम्नतम स्तर पर है और जनता में कांग्रेस को लेकर अब तक नाराजगी है । विगत 10 वर्षों से सत्ता में काबिज काँग्रेस सरकार आम जनता से यादा कॉर्पोरेट की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी ।वैश्वीकरण और उदारीकरण की रफ्तार कम होने से पूरा कॉर्पोरेट जगत नाराज था जिसका खामियाजा कॉग्रेस को भुगतना पड़ा ।
      अब भारतीय जनता पार्टी सत्ता मे ंहै और विगत 6महीने के कार्यकाल से  ये  कॉग्रेसों की ही नीतियों को आगे बढ़ा रही है । पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कॉग्रेस की जिन नीतियों की भारतीय जनता पार्टी जितनी आलोचना और विरोध करती रही वो सत्ता में आने के पश्चात उन्हीं नीतियों को कड़ाई से लागू करने पर आमादा हो गई है । आम जनता हतभ्रत है । उदारीकरण और वैश्वीकरण की प्रक्रिया को जिस तेजी से यह सरकार आगे बढ़ा रही है उसे देखते हुए लगता है कि शीघ्र ही देश के तमाम संसाधनों को निजी हाथों में सौंप दिया जाएगा । इन 6 महीनों में न तो संसद ठीक से चल पाई न किसी विधेयक पर चर्चा ही हो सकी मगर मौजूदा सरकार सभी सुधारों को अध्यादेश के जरिए लागू करने पर आमादा हो गई है । बीमा विधेयक हो या कोल विधेयक हर क्षेत्र में सरकार अध्यादेश लाकर हर क्षेत्र में कॉर्पोरेट के दबाव में दिखलाई दे रही है । कोल क्षेत्र में लगभग 35 वर्षों के पश्चात जबरदस्त हड़ताल शुरू हुई है इसका क्या नतीजा होगा यह आने वाला वक्त बताएगा ।
      इधर नए साल में छत्तीसगढ़ में विगत 11 वर्षों से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को निकाय चुनावों में जबरदस्त झटका लगा है । प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह  के लिये निकाय चुनावों के परिणाम चिन्ताजनक हैं । चुनाव पूर्व प्रदेश से काँग्रेस का सफाया कर देने का दावा खोखला साबित हुआ । दूसरी ओर  काँग्रेस केदिग्गज नेता अजीत जोगी के लिये भी ये परिणाम कम चौंकाने वाले नहीं है । चुनाव के दौरान अजीत जोगी ने कांग्रेस प्रचार से खुद को दूर कर लिया था । हालांकि अब वे कह रहे हैं कि उन्होंने बिलासपुर से खुद को हटाया था मगर यह सच नहीं है । कांग्रेस के लिये यह चुनाव काफी दिनों बाद बहार की तरह आए हैं । प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल और नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव के लिए यह काफी राहत की बात है कि जब पूरे देश में काँग्रेस का जनाधार कम हुआ है वही छत्तीसगढ़ में गत वर्ष हुए विधानसभा चुनाव के पश्चात काँग्रेस की पकड़ मजबूत हुई । इसे दोनों ही नेताओं की अपनी समझ और तालमेल का परिणाम कहा जा सक ता है । देखने वाली बात ये है कि वे इसे आगे कितना साधे रख पाते हैं । चूंकि पंचायत चुनावों के पश्चात आगामी 4 वर्षों तक कोई चुनाव नहीं होने वाले तो कांग्रेस के लिए इन चार वर्षों तक यह उत्साह व तालमेल बनाए रखना चुनौती होगी । हाल के महीनों में काँग्रेस ने पूरी एकजुटता में जनाहित के मुद्दों को उछालकर आम जनता में अपनी पैठ बनाने में कामयबी हासिल की है । जिसे लगातार जारी रखने की आवश्यकता होगी । सबसे चौकाने वाले परिणाम बिलासपुर के कहे जा सकेत है । बिलासपुर में हाल ही में हुए नसबंदी कांड और नवजात शिशुओं की लगातार मौतो ने पूरे प्रदेश को दिलाकर रख दिया और इसी मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने पूरे प्रदेश में प्रदर्शनों के बल पर जनता में अपनी पैठ बनाई । मगर यह आश्चर्यजनक ही कहा जाएगा। कि बिलासपुर वासियों ने अपने शहर में सिर्फ महापौर बल्कि पार्षदों के रूप में भी बड़ी संख्या में भारतीय जनता पार्टी को चुनकर एक तरह से लगातार आरोप झेल रहे मंत्री अमर अग्रवाल को क्लीन चिट दे दी है । निश्चित रूप से इन परिणामों के आधार पर अमर अग्रवाल पर किसी तरह की संगठनात्मक कार्यवाही की अपेक्षा संभव नहीं है ।
      भारतीय जनता पार्टी और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को सबसे बड़ा झटका तो राजधानी रायपुर में लगा जहाँ इस बार भी काँग्रेस का मेयर चुनकर आ गया । भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पसंदीदा प्रत्याशी सच्चिदानंद उपासने को काँग्रेस के युवा प्रत्याशी प्रमोद दुबे ने बड़े अन्तर से हराकर राजधानी में एक बार फिर मेयर पद पर काँग्रेस का कब्जा बरकरार रखा । प्रमोद दुबे की जीत निश्चित रूप से उनकी अपनी छवि के कारण ही हुई । चुनाव के दौरान कांटे का मुकाबला होने के कयास लगाए जा रहे थे मगर नतीजों ने तमाम पूर्वानुमानो को ध्वस्त करते हुए प्रमोद दुबे निर्विवाद रूप से मजबूती के साथ विजयी हुए । इस परिणाम को लेकर भारतीय जनता पार्टी में संगठन स्तर पर भीतरघात की आशंका पर मंथन किया जा रहा है जिससे इन्कार नहीं किया जा सकता मगर यह मानना ही होगा कि इस बार काँग्रेस ने एकजुटता का परिचय दिया और संगठित होकर न रायपुर में जीत हासिल की ।
      राजनैतिक गतिविधियों से इतर गत माह सरकार द्वारा राजधानी में रायपुर साहित्य महोत्सव का आयोजन किया गया । इस 3 दिवसीय आयोजन में देश भर के साहित्यकारों ने हिस्सा लिया । अन्य महोत्सवों की तरह इस महोत्.व में भीआमंत्रितों को सभी तरह की  सरकारी सुविधाएं दी गईं। साथ ही सभी साहित्यकारों को संभवत: पहली बार मानदेय भी दिया गया । नए रायपुर के पुरखौती मुक्तांगन में आयोजित महोत्सव में कई सत्र आयोजित किए गए । इस महोत्सव की गूंज पूरे देश में रही । कुछ साहित्यकारों की उपस्थिति और कई नामचीन लोगों के न आने की चर्चा काफी दिनो तक होती रही । हालांकि छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों में ऐसे किसी विवाद को बल नहीं मिला मगर राष्ट्रीय स्तर पर इस आयोजन को लेकर लम्बे वाद- विवाद होते रहे और कमोबेश अभी तक जारी है । खैर यह सरकार की अपनी पहल और योजना है जिस पर कोई बहस की गुंजाइश नहीं है ,क्योंकि  हर निर्वाचित सरकार को अपनी योजनाओं पर अमल का अधिकार है । दूसरी ओर ऐसे महोत्सवों में शामिल होने  या न होने का निर्णय भी साहित्यकार की व्यक्तिगत सोच और समझ का मामला है । उम्मीद है सरकार इस तरह के आयोजन हर वर्ष करती रहेगी ।
      नए साल के आंगाज् ा के साथ ही कई स्मृतियां दिमाग में कौध जाती हैं । हर नए साल में सुप्रसिद्ब रंगकर्मी सफदर हाशमी की शहादत कौंध जाती है । और इस वर्ष सफदर की शहादत को 25 वर्ष हो रहे हैं । इन पच्चीस वर्षो में कट्टरपंथ और असहिष्णुता में लगातार इजाफा होता गया है । अभिव्यक्ति की आजादी पर संकट बढ़ता ही जा रहा है । हाल ही में फ्रांस में कट्टर मुस्लिम पंथियों ने मीडिया की आजादी या कहे अभियांत्रिकी स्वतंत्रता पर कातिलाना हमला करते हुए संपादक, पत्रकार एवं कार्टूनिस्टों सहित करीब 12 लोगों को बेतहाशा फायरिंग करते हुए मौत के घाट उतार दिया । हमलावर मुस्लिम कट्टरपंथी थे और वे पत्रिका में प्रकाशित कार्टून से खफा थे । एक सभ्य समाज की कल्पना को ऐसे सांप्रदायिक व कट्टरपंथी आतंक के साए में नेस्तनाबूद कर देना चाहते हैं । पूरे विश्व में धार्मिक कट्टरवाद और असहिष्णुता तेजी से पैर पसार रही है । 21 वीं सदी में जहां मानव विकास के नए नए आयाम गढ़े जा रहे हैं, विज्ञान रोजाना ्नई उँचाईयों को छू रहा है वही दूसरी ओर चंद साप्रदायिक, धार्मिक कट्टरपंथी पूरे विश्व व मानव समाज को पुन: अंधे व बर्बर युग की ओर धकेलने के प्रयास में लगे हैं । इस वक्त पूरी सभ्यता दो राहे पर खड़ी है । एक ओर समता व शांति के पक्षधर है जो तादाद में काफी कम है तो दूसरी ओर विशाले प्रतिगामी ताकते पूरी सभ्यता को तहसनहस कर देना चाहती हैं । खतरा सिर्फ सांप्रदायकि ताकतों से नहीं बल्कि आर्थिक ताकतों से भी है जो पूरे विश्व की दबी कुचली गरीब जनता को अंधी खाई में धकेलकर खुद समृद्ध हो जाना चाहती है । चंद मुट्ठी भर कॉपोरेट पूरी दुनिया में 85 प्रतिशत संसाधनों पर कब्जा जमाए बैठे हैं । उनकी भूख ख्तम होने की बजाय लगातार बढ़ती ही जा रही है । ऐसे दौर में सभी को एकजुट होकर प्रतिरोध में सामने आना होगा एक बेहतर दुनिया के निर्माण के लिए ...


सोमवार, 15 दिसंबर 2014

रायपुर साहित्य महोत्सव पर------------

रायपुर साहित्य महोत्सव पर------------

निर्वाचित हत्यारों के साथ रायपुर मेँ ---विमल कुमार

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मैं रायपुर जाना चाहता हूँ
हत्यारों के सामने शीश नवाने के लिए
उन्हें बताने के लिए 
कि मुल्क में अब बहुत शांति है
दंगे फसाद अब नहीं होते
और कोई भूखा नहीं है अब
डिजिटल इंडिया में
मैं रायपुर जाकर यह भी बताना चाहता हूँ
कि तुम मुझे खरीद भी सकते हो
इस तरह सम्मानित करके
जब चाहो
तुम जहाँ भी करोगे आमंत्रित
वहां हम हाज़िर हो जायेंगे
बिलाशक
मैं अभी जा रहा हूँ
निकल गया हूँ घर से
क्योंकि वहां जाना बहुत जरूरी है
लोकतंत्र की रक्षा के लिए
अगर मैं नहीं गया वहां तो
तो तुम मुझे एक दिन
इतिहास से भी बाहर कर दोगे
जा रहा हूँ
कि उनके अल्बम में एक तस्वीर मेरी भी हो
कम से कम
निर्वाचित हत्यारों के साथ
जो तस्दीक करे
कि मैं कहाँ खड़ा था अपने समय में
-विमल कुमार
( ताकि सनद रहे और वक्त ज़रुरत काम आये )

गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार के 11 वर्ष : -जीवेश चौबे

इस दिसम्बर छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार के 11 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं । लगातार तीसरी बार जीतने का शानदार रिकार्ड बनाकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने देश में अपना नाम व मान बढ़ाया है । प्रदेश गठन के पश्चात हुए पहले स्वतंत्र चुनाव में डॉ. रमन सिंह ने पहली बार 2003 में बहुमत प्राप्त किया था । तब लगभग अजेय समझे जाने वाले कांग्रेस के अजीत जोगी को मात देकर डॉ. रमन सिंह ने पहली बार छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री का पद संभाला ,तब से लगातार उन्होंने अपनी सौम्य व संयत छवि से प्रदेश के मतदाताओं को अपने मोह से बांधे रखा है। 2008 एवं पिछले वर्ष 2013 दोनों ही चुनावों में तमाम अटकलों को विराम देते हुए उन्हों जीत का परचम लहराया । इस वर्ष उनकी हैट्रिक को 1 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं । इस पर सुहागा ये कि केन्द में भी भाजपा की सरकार पूर्ण बहुमत से सत्ता में आ गई है, तो अब जीत की हैट्रिक का जश्न तो बनता है । इसी खुशी को सार्वजनिक रूप से मनाने के बहाने आने वाले निकाय चुनावों में पकड़ बनाने के उद्देश्य से भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने जश्न को वृहत्तर स्तर पर आयोजित किया है । इस कड़ी में दो महत्वपूर्ण आयोजन किए जा रहे हैं । एक राजनैतिक व सांगठिक स्तर पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की रैली एवं दूसरा बौद्धिक वर्ग को संतुष्ठ करने राष्ट्रीय स्तर का साहित्यिक आयोजन, रायपुर साहित्य महोत्सव, इसी कड़ी में पहली बार आयोजित किया जा रहा है । 12 दिसम्बर को अमित शाह की रैली एवं साहित्यिक महोत्सव का आयोजन इसी मायने में महत्वपूर्ण है कि प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार लगातार तीसरी बार सत्ता में आई है एवं तीसरी बार सत्ता में आने एक वर्ष भी पूर्ण हो रहे हैं । भाजपा की यह उपलब्धि कम नहीं है । ऐसा नहीं है कि भाजपा को यह उपलब्धि कोई थाली में परोसकर मिली हो । इन 11 वर्षों में ऐसी कई घटनाएं हुई जिससे लगा कि अब भाजपा के दिन लद गए मगर पार्टी जीतने में कामयाब रही । पिछले कार्यकाल में गर्भाशय कांड से लेकर झीरम घाटी तक की वारदातों ने भाजपा की नींद उड़ा दी थी । मगर कांग्रेस अपेक्षित लाभ उठाने में नाकाम रही । इधर तीसरी बार सत्ता में आई भाजपा के लिये यह एक वर्ष भी काफी दुखदायी रहा है । हाल ही में नसबंदी कांड , फिर नक्सल हमले में जवानों की मौत और फिर नवजात शिशुओं की लगातार मौतों ने सरकार को परेशानियों के साथ साथ सवालों के कटघरे में भी खड़ा कर दिया है । विपक्षी दल कांग्रेस लगातार इन मुद्दों पर सरकार को घेर रहा है मगर आम जनता में किसी तरह न तो कोई जन आंदोलन खड़ा हुआ न ही सामाजिक स्तर पर कोई ठोस विरोध के साथ सामने आया । कुल मिलाकर राजनैतिक विरोध की आड़ में संवेदनशील मद्दे दब कर रह गए। काँग्रेस ने तमाम तरीके अपनाए यहां तक कि देश की राजधानी दिल्ली में भी राय सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किए , मगर आब तक तो कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया । विपक्षी दल कांग्रेस ने इन हादसों को लेकर साहित्य महोत्सव का भी विरोध किया । साहित्यकारों से महोत्सव में शामिल न होने की अपील की इसका आगे क्या असर होगा यह तो समय बताएगा मगर अब तक तो किसी साहित्यकार ने काँग्रेस की अपील को गंभीरता से लिया हो ऐसा लगता नहीं है । विपक्षी दल के नाते कांग्रेस का विरोध भी अपनी जगह ठीक है । यदि भाजपा विपक्ष में होती तो वह भी यही करती । बात साहित्यकारों की करें तो यह बात काफी दुखद भी है कि पूर्व में भी किसी घटना पर कभी भी साहित्यकारों की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलती रही । विशेष रूप से छत्तीसगढ में गर्भाशय कांड, झीरम घाटी ,नसबंदी कांड , नवजात शिशुओं की मौत से लेकरअभी या पूर्व में भी नक्सली हमलों में मारे गए जवानों का मामला हो, इन किसी भी हादसों में अंचल के साहित्यिक बौद्धिक हलकों में कोई प्रतिक्रिया दिखलाई नहीं दी । इससे इन आत्मकेन्द्रितों की संवेदनशीलता का अंदाजा लगाया जा सकता है । ऐसे लोगों से अपील करने का क्या तुक? और इसका नतीजा भी कुछ कुछ देखने मिला जब अखबारों में कुछ साहित्यकारों के साक्षात्कारों में उन्होंने खुलकर कांग्रेस की अपील को खारिज कर दिया। वैसे यह ठीक भी है कि कांग्रेस के कहने से कोई क्यों चले ? लोग कहने लगे कि अशोक बाजपेयी ने तो दशकों पूर्व कांग्रेस के शासनकाल में भोपाल गैस त्रासदी के ठीक बाद हुए साहित्यिक महोत्सव में कहा था कि मुर्दो के साथ मर नहीं जाते । कल भी साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि महोत्सव है कोई मनोरंजन नहीं जिसका विरोध किया जाय , इतने वरिष्ठ और विद्वान साहित्यकार ने प्रतिक्रिया में कहा तो ठीक ही होगा । विभिन्न मसलों पर अक्सर बौद्धिक साहित्यिक वर्ग सर्द खामोशी ओढ़े रहता है । इक्का दुक्का साहित्यकारों को छोड़ सराकरी प्राश्रय प्राप्त साहित्यकार अक्सर चुप रहकर अपनी रोटियाँ सेकते रहते हैं । एक सतही और चलताऊ सा तर्क दे देते हैं कि हर घटना पर कोई झण्डा उठा लेना, धरना देना या सड़क पर आना तो जरूरी नहीं है ... मुद्दों से कन्नी काट जाने का यह अच्छा बहाना होता है । इस बीच नक्सलियों के हमले में एक बार फिर जवानों की मौत हुई । नक्सल मोर्चे पर सरकार लगातार नाकाम हो रही है । अब तो केन्द्र में भी भाजपा की सरकार है तो ठीकरा केन्द्र पर मढ़ना भी संभव नहीं हो पा रहा है । केन्द्रिय गृहमंत्री आए और राजधानी से ही लौट गए । बस्तर मुख्यालय जगदलपुर तक जाने की ज़ेहनत नहीं उठाई । छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से ही केन्द्र की उपेक्षा का शिकार रहा है चाहे केन्द्र में कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की । इन सब मुद्दों पर हर तरह के विरोध विपक्षी दल करते रहे हैं । यह विपक्ष का कर्म भी है और धर्म भी। मगर हकीकत ये है कि भाजपा विगत 11 वर्षों से लगातार सत्ता में काबिज है और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को फिलहाल किसी भी तरह की कोई गंभीर चुनौती मिलती दिख नहीं रही है । तो सफलता का जश्न भी लाजमी है जो अमित शाह की रैली और रायपुर साहित्य महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है । ®®®

मंगलवार, 21 अक्टूबर 2014

संगमन-20

संगमन- 20
इस बार मण्डी, हिमाचल प्रदेश में....

मंगलवार, 30 सितंबर 2014

अकार 39 में- नामवर सिंह के जीवन के कुछ अनुद्धाटित तथ्य


नामवर सिंह के जीवन के कुछ अनुद्धाटित तथ्य
http://sangamankar.com/index.php?option=com_content&view=article&id=248&Itemid=692
1960 का नामवर सिंह से जुड़ा यह गोपनीय सरकारी पत्र व्यवहार हमें'नेशनल आर्काइव' से प्राप्त हुआ है। यह पत्र व्यवहार नामवर जी के शुरूआती जीवन की एक पूरी छवि देता है। उनकी वैचारिकता, कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति प्रतिबध्दता और सक्रियता का प्रमाण भी है। सागर विश्वविद्यालय में नामवर जी की हिंदी के असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति तथा आगे उसे स्थायी करने के प्रति तत्कालीन वाइस चांसलर डी.पी. मिश्रा का पत्र बेहद ध्यान से पढ़े जाने की मांग करता है। इसी तरह सीआईडी रिपोर्ट भी । ये दोनों दस्तावेज नामवर जी के एक प्रतिबध्द, समर्पित,सक्रिय कम्युनिस्ट होने का प्रमाण हैं और इसका भी, कि कांग्रेसी सरकार, विशेष रूप से डी.पी. मिश्रा, किस तरह कम्युनिस्टों के प्रति सोचते और व्यवहार करते थे। …..
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http://sangamankar.com/index.php