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सोमवार, 15 जुलाई 2013

बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा...


बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा...
कुछ इसी तर्ज़ पर चलाया जा रहा है मोदी का प्रचार ...एक बात तो माननी होगी कि मोदी के प्रचार तंत्र में  संलग्न  प्रोफेशनल्स  अपनी प्रतिभा के बल पर पूरे देश को मोदीमय करने में कामयाब हो रहे हैं......मीडिया तो अपने व्यवसायिक लाभ के चलते  इस प्रचार तंत्र का भागीदार है ही बल्कि इलेक्ट्रॉनिक मी़डिया तो अभी से पेड न्यूज में लग गया है....जिस तरह पूर्व में निर्मल बाबा के कार्यक्रम फीचर की तरह दिखाए जाते रहे फिर बाद में भंडाफोड़ होने पर अब भी उनका कार्यक्रम दिखाया जा रहा है मगर कोने में प्रमोशनल या स्पॉन्सर्ड का टैग लगा दिया जाता है , यानि देश समाज की सेवा का दंभ भरने वाला मीडिया जिस तरह निर्मल बाबा के पाखंड को एक समय उजागर करने में लगा था वो स्पॉन्सर होने के पश्चात दिखाए जा सकने की श्रेणी में ला दिया गया ,मतलब पैसा फेंको तमाशा देखो...उसी तरह मोदी के तमाम कार्यक्रम भी पैसे फिंकवाकर ही दिखाए जा सकते है.... तो मीडिया तो अपनी रोटी सेक रहा है मगर देश का बौद्धिक वर्ग भी इस मकड़जाल की गिरफ्त में फंसता जा रहा है.... एक एक शब्द ..एक एक कदम बहुत सोचा समझा और सुनियोजित सा है.. सांप्रदायिकता का बुर्का ” .. घूंघट नहीं ..क्यों??? इस तरह पूरी पटकथा जबरदस्त पूर्वानुमान के साथ लिखी जाती है जिससे पूरे देश में मोदी के पक्ष या विपक्ष दोनो में चर्चा का माहौल पैदा हो....हम आप भी इस जाल से बच नहीं  सकते क्योंकि बयानो और हरकतों से  आपको इस हद तक विचलित कर दिया जाता है कि आप प्रतिक्रिया से दूर नहीं भाग सकते....मुझे ऐसा लगता है कि यदि हम इस अभियान को नजरअंदाज करना शुरु कर दें तो निश्चित रूप से मोदी के प्रचार खेमे में बेचैनी फैलेगी क्योंकि उनका एकमात्र उद्देश्य गंभीर बहस की बजाय सनसनी फैलाना ही है....अतः अबसे आगे मोदी की चर्चा पर कुछ विराम लगाकर देखा जाए....कॉंग्रेस से ऐसी उम्मीद बेमानी है ...कॉंग्रेस तो हाल  में बौद्धिक दिवालिएपन के संक्रमण से गुजर रही है....आप लोगों के साथ यह प्रयोग करके देखना चाहता हूं....

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